प्रिया सुधी पाठक गण,
    सादर वंदन, 
आज हमारी परिचर्चा का विषय है स्वहित व परहित, रामायण
मैं एक चौपाई सुनते आ रहे हैं, 
परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।
इसका मूल अर्थ है दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं व दूसरों को किसी भी प्रकार की पीड़ा पहुंचाने के समान कोई पाप नहीं।
दैनिक जीवन में हम कई बार शब्दों का प्रयोग करते हैं, वे शब्द हम किस प्रकार उनका प्रयोग करते हैं, वैसा ही परिणाम हमें देते हैं। 
             परहित का चिंतन अवश्य करना चाहिये, पर वर्तमान समय घोर कलिकाल है, अतः स्वहित को साधते हुए परहित भी हम किस प्रकार कर सके, यही वर्तमान समय में उचित संयोजन जान पड़ता है। 
             हमारे परिवार के लिये जो मूलभूत आवश्यकताएं हैं, उनकी परिपूर्ति के उपरांत हम इस बात का भी अवश्य चिंतन करें,
हम सभी सामाजिक प्राणी है, जहां पर भी हम रहते हैं, उस घर के प्रति हमारी सर्वाधिक जिम्मेवारी है, उसे सही ढंग से पूर्ण करने के उपरांत हम अपने जीवन का कुछ समय समाज को भी अवश्य दें, 
चाहे वह विद्यादान के रूप में हो, द्रव्य के अंशदान के रूप में हो, निस्वार्थ भाव से परिचर्चा हो, इस प्रकार की गतिविधि से हम नियम पूर्वक जुड़े। 
                 इससे हमारे जीवन में मानसिक शांति की स्थापना होगी, हम अपने जीवन काल में सब सुखों को भोगते हुए भी परमपिता परमेश्वर के चरणों में वंदन करते हुए समस्त सुख जो हमें प्राप्त हुए हैं, उसके लिए उसका हृदय से वंदन करते रहें।
                स्वहित व परहित दोनों का ही सुंदर समायोजन अगर हम अपने जीवन काल में कर सके तो इसी जीवन में हम स्वर्ग या मोक्ष पा सकते हैं, निर्वाण पा सकते हैं।
               हम चिंतन की धारा को बदलें और आंतरिक परिवर्तन जैसे ही हम करेंगे, एक अलग ही अनुभूति हमें भीतर से प्राप्त होगी।
विशेष:-हम इसी जीवन काल में स्वहित व परहित का सुंदर संयोजन अगर कर सके यहीं पर हम स्वर्ग का निर्माण कर सकते हैं, दृष्टि बदले, सृष्टि स्वयं बदल जायेगी।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद 
जय भारत।
सादर नमन, 
            हम सब किसी न किसी प्रकार विभिन्न अहसासों से गुजरते हैं, हम सभी का जीवन एक अहसास है, इस संसार में हम सभी किन्हीं एहसासों को जीते हुए ही पले व बड़े होते है।
              जो भी व्यक्ति दिल से हमारे करीब होता है, हर पल हमारी उन्नति चाहता है, जीवन में हर समय आगे की ओर बढ़ते हुए देखना चाहता है, वह व्यक्ति या विचार या एहसास हमें जीवन ऊर्जा से पूर्ण करता है, कोई भी व्यक्ति जिसके हम करीब होते हैं, 
वह विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं का एक संगम होते हैं।
        हमें सबसे अधिक करीब वे मालूम होते हैं, जिनके जीवन
मैं हमारी वैचारिक उपस्थिति की महत्ता हो, हम मनुष्य हैं, सुख दुख के क्षण आते व जाते हैं, सबसे करीब वही होता है, जो बिना 
शर्त सदैव हमारे साथ रहे, यह जीवन एक निरंतर यात्रा है, 
अहसासों की, जिसके चले जाने पर हम जीवित होते हुए भी मृत ही होते हैं, इस एक ही जीवन यात्रा में हम विभिन्न अहसासों को जी लेते हैं, जिसे हम हृदय से चाहते हैं, उसका अहित हम नहीं देख सकते, यह एक अहसास है, जिसके हम सबसे अधिक करीब होते हैं, प्रथम हमारे परिवार के सदस्य, फिर रि हम अपनीयत्रा केश्तेदार व हमारे पड़ोसी वह घनिष्ठ मित्र, जो बिना किसी स्वार्थ के हमसे जुड़ाव 
रखते हैं, लेकिन हर एहसास की एक सीमा है, हमारे भीतर जो जीवन को जीने की ललक को जगाता है, जीवन को शिद्दत से जीना, रिश्तो को निभाना जो जानता है, वह व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन की सभी मर्यादाओं का पालन करता हुआ भी हमें एक जीवंत एहसास से पूर्ण कराता है। 
       हमारा जीवन केवल हमारा नहीं, उससे कई जीवन जुड़े हैं,
हम अपने जीवन में स्वयं का हित संरक्षण करते हुऐ कितने और व्यक्तियों को उनके जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान कर पाते हैं, हमारा यह आत्मिक एहसास हमें जीवन ऊर्जा से परिपूर्ण करता है। 
         भौतिक साधनों की
 बहुतायत होते हुए भी हम जैसे किसी मृग मरीचिका की भांति 
हमारा जीवन जीते हैं, हम अपनी यात्रा के दौरान अपने जीवन में
विभिन्न परिवारिक, सामाजिक दायित्व बोधो के तले दबे होते हैं,
अपने जीवन की प्राथमिकताएं हम स्वयं ही तय नहीं कर पाते।
जीवन हमें कई बार व्यवहारिक पहलुओं से परिचित कराता है।
       जो वास्तव में हमारा अपना सबसे करीबी मित्र है, वह हमारा स्वयं में गहरा विश्वास, क्योंकि वही आत्मविश्वास का एहसास 
ही हमें जीवन में न केवल स्वयं हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा हमें देता है, वरन् हमारे साथ जुड़े हर इंसान में भी एक अंगूठे आत्मविश्वास का संचार कर देता है, जीवन को हम किस प्रकार के नजरिये से देखते हैं, मानवीय बोध अगर गहरा हो तो हम सही मार्ग पर चलते हैं, मानवीय बोध अगर गहरा न हो तो हम मार्ग भटक भी सकते हैं,
         अपना जीवन जीते हुए हम किस प्रकार औरों के जीवन में आगे बढ़ने  में मदद करते हैं, वही हमारी जीवन ऊर्जा को और बढ़ाता है, हम हमेशा बोध न होने के कारण इसके विपरित मार्ग
को अपना लेते हैं वह मानवीय संवेदनाओं से परे होने पर और अधिक अशांत हो जाते हैं। 
        चिंतन जितना अधिक गहरा होगा अनुभूति जितनी अधिक होगी, उतना ही हमारा जीवन प्रशस्त होगा, हमारे जीवन यात्रा में 
माननीय एहसास कि हमें ऊपर उठाते हैं, जितना हम मानवीयता 
करीब होते हैं, उतनी ही अधिक जीवन ऊर्जा से हम भरपूर होते हैं। 
            विशेष:- हमारे जीवन की पूर्णता मानव होने में है, यह
 एहसास हमें गहरे चिंतन मनन के बाद ही आता है, जीवन तो हम 
सभी जी रहे है, पर इस यात्रा में हम कितनों का साथ सही ढंग से निभा सके, उसे पर ही हमारे जीवन यात्रा की सार्थकता है, यही अहसास  हमें पूर्णता की और ले जाता है।

प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
आज प्रवाह में हम बात करेंगे मन की उलझन विषय पर।
आज प्रवाह में संवाद का विषय कुछ रोचक व लीक से हटकर है।आशा करता हूं आप लोगों को मेरा ब्लॉग व मेरा आप से संवाद का तरीका पसंद आ रहा होगा।
जो मेरे दिल में होता है, कोशिश करता हूं, वहीं लेखनी में आए, क्योंकि जब शब्दों में बनावट आ जाती है, तो वे अपना अर्थ खो देते हैं।
आइए विषय पर चलते हैं, मन की उलझन।
हम सभी अपने जीवन में कई समस्याओं से गुजरते हैं,उस समय हमारा मन कुछ कहता व मस्तिष्क कुछ और  हम दुविधापूर्ण स्थिति में अपने आप को पाते हैं।
इसका सही तरीका तो केवल यही है कि हम शांति और धैर्य पूर्वक चीजों को समझें, तब हम मन की उलझन को समझ सकेंगे।
सभी व्यक्तियों का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है, कोई परिवार में समय बिताना पसंद करता है तो कोई मित्रों में, दरअसल हम उसे अपने मन की उलझन बताना चाहते हैं, जिसके हम ह्रदय से करीब होते हैं।
       जीवन में कुछ अच्छे मित्र, अच्छे नियम अवश्य बनाएं, यह दोनों ही आपके मन की उलझन से निकलने में रामबाण का कार्य करेंगे।
         अच्छे मित्र जीवन की अनमोल धरोहर होते हैं, समय चाहे विपरीत हो या अनुकूल,सभी झंझावातो में वह संबल बनकर आपके साथ एक अडिग चट्टान की भांति खड़े होते हैं।
         अगर आप अपने परिवार के लिए अपना योगदान करते हैं ,तो मन की उलझन सामने आने पर वही आपके सबसे निकटतम सहयोगी साबित होते हैं।
         इसके बाद अच्छे मित्र जीवन में आपके सहायक होते हैं अच्छे विचार अच्छा साहित्य धर्म ग्रंथ अच्छे नियम यह सब हमारी मानसिक उलझन में दर्पण का कार्य करते हैं।
         मन की उलझन जब बढ़ जाए, आंधी का गुबार कोई छाए, तूफान भीतर जब कोई चल रहा हो, मानस मन बार-बार मचल रहा हो, शांति से होने देना, जब तूफान गुजर जाए, तब उसे देखना परत दर परत सब दिखने लगेगा, मन की उलझन पर पड़ा धूलो का गुबार जब हट जाए, स्वच्छ विचारों की फुहार उस पर पड़ने देना, सब कुछ ठीक होने लगेगा बस मन की उलझन को थोड़ा वक्त देना।
       विशेष:-जब भी मन में उलझन हो, तब सबसे पहले हमें शांत चित्त होना चाहिए। ताकि हम गहराई से उसे समझ सके। निश्चित ही उत्तर हमें अपने मन की गहराई में जाने पर प्राप्त होगा और वही आपके लिए सत्य भी होगा
आपका अपना
सुनील शर्मा

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मेरी यह वैचारिक प्रवाह यात्रा आपको कैसी लग रही है, कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें।
समाज का निर्माण हम सभी से मिलकर होता है, इसीलिए समाज निर्माण में हम सभी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी अवश्य होती है।
अब सवाल यह है कि हम जैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, उसके प्रति हम सब स्वयं कितने सजग हैं, क्योंकि हमारी सजगता व समाज के प्रति हमारी सही जवाबदेह ही एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक होगी।
जिस देश का समाज स्वस्थ होगा, उन्नति शील विचारों से भरपूर होगा, समाज के सभी वर्ग समाज के हित में कार्य करेंगे, तभी हम समाज का निर्माण कर सकेंगे।
हर काल में नई चुनौती समाज के सामने आती है, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती पुरानी गलत मान्यताओं को अस्वीकार करके  सही मान्यताओं ,जो तात्कालिक परिवेश में अधिक उपयुक्त जान पड़ती है, उन्हें अपनाने की है।
सभी पुरानी मान्यताएं गलत नहीं होती है वह मान्यता जो समय अनुकूल हो, तात्कालिक परिवेश की आवश्यकता को समझ कर नई व पुरानी दोनों में से जो समाज हित में उपयोगी हो उन्हें स्वीकार्यता प्रदान करें।
बदलाव प्रकृति का नियम है, और अच्छे बदलाव को सामाजिक व्यवस्था का अंग बनाना ही समाज का निर्माण करना है।
हमें समाज के निर्माण के लिए वैचारिक संकीर्णता को त्यागना होगा, तभी समाज का उत्थान व निर्माण संभव है।
समाज के सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक व सहायक बने, ना कि उनमें वैचारिक संघर्ष हो, कई शताब्दियों से चली आ रही खोखली परंपराओं में से सही परंपरा को जीवित रखने और गलत परंपराओं को ध्वस्त करने का भी हम में साहस होना चाहिए, तभी समाज का निर्माण संभव है।
जब हम स्वयं  पूर्ण श्रद्धा से इसके बदलाव के लिए स्वयं भी तैयार होंगे व औरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकेंगे, सदैव गतिशील , विचारशील व प्रयोग धर्मी समाज ही आगे बढ़ते हैं, आइए प्रण करें समाज के निर्माण में हमारी भूमिका हम स्वयं चुने व इस का निर्वहन करें, किस प्रकार से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है, उस पर विचार करें, मंथन करें, पहल तो करें ,राहे स्वयं बन जाएगी।
विशेष:-समाज का निर्माण समाज के सभी वर्गों की जवाबदारी है, यह सब पर निर्भर है कि वह कैसे अपनी सामाजिक जवाबदेही का समुचित उत्तरदायित्व वहन करते हैं। एक बेहतर समाज का निर्माण तभी संभव है जब सभी वर्ग समाज हित में चिंतन करें व उस में सहभागी  बने।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद
जय भारत।
प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन ,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
हम सभी की जिंदगी एक सफर है, यात्रा है, हम इस सफर को किस प्रकार तय करते हैं, यह हमारी सोच पर निर्भर है, अगर हम सकारात्मक रुख के साथ अपना सफर करते रहे तो यह सफर खुशनुमा होगा व अगर हम नकारात्मक रूख के साथ सफर को करेंगे तो अंत दुखदाई होगा।
              हमारी जिंदगी के सफर में हम कई तरह  की परिस्थितियों का सामना करते हैं, कुछ अनुकूल होती है, कुछ प्रतिकूल होती है ,लेकिन हमारा सफर जारी रहता है जो  अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाए रखता है वह अंततः अपनी जिंदगी  को खुशनुमा बना लेता है।
            जिंदगी के इस सफर में कई मुश्किल हालात भी बनते हैं, सभी प्रकार की विचारधारा वाले व्यक्तित्व हमारे जीवन में आते हैं,  कुछ व्यक्तित्व हमारे जीवन में गहरी छाप छोड़ जाते हैं इस प्रकार उतार चढ़ाव का सामना करते हुए हम अपने इस सफर को तय करते जाते हैं।
           सभी को ईश्वर ने कुछ न कुछ विशेष चीजें प्रदान की हे जो हम में हैं, वह किसी और में नहीं, हम अपने भीतर छिपी उस विशेष प्रतिभा को पहचाने विशिष्ट गुण पर अपना कार्य करे, वही आपकी जिंदगी के सफर के लिए सबसे अधिक उपयोगी सिद्ध होगा।
            जिंदगी के सफर में क्या उपयोगी है क्या अनु पयोगी है ,यह अवश्य जाने। जीवन में अपनी आलोचना से कभी न घबराए क्यों कि जो निष्क्रिय होगा उसकी तो आलोचना होगी नहीं जो सक्रिय होगा उसी की आलोचना होगी, आलोचना से यह तो सिंद्ध होता है कि हम अपने जीवन में सक्रिय है, सक्रियता ही आपके जीवन में परिणाम लाने वाली है।
        जिंदगी का सफर अनूठा सफर है, यहां आपका कोई हमसफ़र नहीं हमें अकेले ही यात्रा तय करना है जीवन में रंगों को भरना है। जीवन की विविधता ही इसे जीवंत  बनाती है, एकरसता जीवन के आनंद को खत्म करती है, प्रयोग करते रहें रचनाधर्मी बने।
          जीवन में कभी भी निराशा को न अपनाएं, इसमें चलते जाए कुछ अच्छा कुछ बुरा सब इसमें समाए, चलते रहें , इसी में सार है।
 
विशेष:-जिंदगी एक सफर है ,हमें यह तय तो करना ही होगा। जीवन खट्टे मीठे अच्छे बुरे सभी प्रकार के भाव इस सफर के दौरान आएंगे हम उस सभी का आनंद उठाए।
आप का अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद जय भारत।

          
               

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
सभी को मंगल प्रणाम, मेरी यह वैचारिक प्रवाह यात्रा आपको कैसी लग रही है ,कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दे।
             समाज का निर्माण हम सभी को मिलकर करना होता है। किसी भी समाज के निर्माण में वहां के नागरिकों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी अवश्य होती हैं । सवाल यह है कि हम जैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं ,उसके प्रति हम सब या स्वयं किसने सजग है, क्योंकि हमारी सजगता व समाज के प्रति हमारी सही जवाबदारी  ही एक स्वस्थ व उन्नत समाज के निर्माण में सहायक होगी।
                   जिस देश का समाज स्वस्थ होगा ,उन्नति शील विचारों से भरपूर होगा ,समाज के सभी वर्ग समाज के हित में कार्य करेंगे, तभी हम समाज का निर्माण कर सकेंगे।
                 हर काल में समाज के सामने नई चुनौती आती है, उनने से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती को स्वीकार करें ,गलत मान्यताओं को अस्वीकार करके नई सही मान्यताओं जन्म दे, वह जो तात्कालिक सामाजिक परिवेश में अधिक उपयुक्त जान पड़ती है , वहीं मान्यताए  हमें अपनाना चाहिए। सभी पुरानी मान्यताए सही नहीं होती व सभी नई मान्यताए गलत नहीं होती, कौन सी मान्यता वर्तमान परिवेश में सही है उसे समझकर हम उसे अपनाए।
              हमें समयानुकूल व तात्कालिक परिवेश की आवश्यकताओं को समझकर नई व पुरानी धारणा  जो भी सही हो उसे अपनाने की आवश्यकता है, दोनों में जो समाज हित में उपयोगी हो उन्हें स्वीकार्यता  प्रदान करे।
          बदलाव प्रकृति का नियम है और अच्छे बदलाव को सामाजिकता का अंग बनाना ही समाज का निर्माण करना है, हमें समाज के निर्माण के लिए वैचारिक संकीर्णता  को त्यागना होगा, समाज के सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक  बने न कि उनमें वैचारिक संघर्ष हो।
           सदियों से चली आ रही परंपरा में सही को स्वीकारने का साहस व गलत को नकारने साहस हम में होना चाहिए, सदियों से चली आ रही गलत परंपराओं को ध्वस्त करने का साहस भी ‌‌‌‌‌‌‌‌ हम में होना चाहिए ।
          जब तक हम स्वयं हृदय से बदलाव के लिए तैयार न होंगे तो औरों को भी इसके लिए प्रेरित न कर सकेंगे। सदैव गतिशील व विचारशील तथा प्रयोगधर्मी समाज ही आगे बढ़ते हैं, समाज के निर्माण में हमारी भूमिका को हम स्वयं चुने व उसका निर्वहन करें, तभी एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है।
           किस प्रकार से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता हे, उस पर विचार करें मंथन करें ,पहल करे,राहे तो स्वयं बन जायेगी।
        विशेष:-समाज का निर्माण समाज की सभी वर्गों की जवाबदारी हैं, यह हम सब पर निर्भर हे कि हम कैसे अपनी सामाजिक जवाब देविका समुचित उत्तरदायित्व वहन करते हैं। एक बेहतर समाज का निर्माण तभी संभव है जब सभी वर्ग समाज हित में चिंतन करें व उस में। सहभागी बने।
आपका अपना,
सुनील शर्मा,
जय हिंद ,जय भारत।


प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन ,
आप सभी को मंगल प्रणम,
काफी दिनों के बाद फिर एक लेख लिख रहा हूं, जो हमेशा हमारे मन में एक प्रश्न के रूप में सदैव रहता है।
प्रतिकूल परिस्थितियों में हम शांत कैसे रहें, हम में से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में यह परिस्थिति तो अवश्य आती है, जब हमें अपने जीवन में सब कुछ प्रतिकूल जान पड़ता है।
हमारे अपने भी विपरीत समय में हमारे विरुद्ध खड़े नजर आते हैं, धन की दृष्टि से भी जब समय पर हमे सहायता चाहिए, वह उपलब्ध नहीं होती, मानसिक संबल देने वाला कोई नजर नहीं आता, सभी बातें हमें प्रतिकूलतम प्रतीत होती हैं, तब इन परिस्थितियों में हमारा अशांत होना अस्वाभाविक भी नहीं है, परंतु इसी समय हमारे धैर्य की परीक्षा होती है।
जब हम धैर्य पूर्वक इन सभी परिस्थितियों में अपने आप को शांत चित्त रख पाते हैं, तब हम निश्चित ही उन परिस्थितियों से बाहर निकलने की सामर्थ्य भी रखते हैं। हम ध्यान रखेंगे तो अपने आप में सही दिशा बोध का ज्ञान होगा, सही दिशा बोध का ज्ञान होने पर व चिंतन करने पर हम स्वमेव परिस्थितियों का  सही आकलन कर उन परिस्थितियों से सबक सीख सकते हैं, उनका सामना कर सकते हैं।
यह समय बड़ा ही नाजुक समय है, कोरोना महामारी का प्रकोप चरम पर है। फिर भी यही मानवीय जीवन है, हम रुक नहीं सकते, अंग्रेजी में एक कहावत भी है,"शो मस्ट गो ऑन" , यानी कि जीवन चलता रहे, उसी लयबद्धता से  चलता रहे, जैसे जीवन में कुछ विपरीत घटा ही ना हो।
             जीवन में हमें कई सबक मिलते हैं, कई उतार-चढ़ाव, आशा निराशा के क्षणों से हम रूबरू होते हैं, पर हार नहीं मानते। प्रतिकूल से भी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने पर भी हम अगर शांत चित्त रह कर उनका सामना कर पा रहे हैं तो यह उस ईश्वर की परम अनुकंपा ही है।
              यह सब उस परम शक्ति के अधीन है, प्रतिकूल परिस्थितियां हमें जीवन संघर्ष सिखाती है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में शांत रहना सीख जाता है, वह अपने जीवन संग्राम में विजेता बनता है।
              सवाल यह है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में हम कैसे शांत रहें, क्योंकि जैसे ही प्रतिकूल परिस्थितियों से किसी व्यक्ति का सामना होता है, सबसे पहले उसका मानसिक संतुलन बिगड़ता है, मानसिक संतुलन को स्थिर रखना सीखना चाहिए, प्रतिकूल परिस्थितियों से घबराए नहीं, वरन धैर्यपूर्वक उनका सामना करें, शांत चित्त रहने का प्रयास करें, अनुकूल परिस्थिति नहीं रही तो प्रतिकूल परिस्थिति भी सदैव नहीं रहेगी।
           जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियां तो हमारे जीवन निर्माण के लिए ही आती है, प्रतिकूल परिस्थिति होने पर भी जो हार नहीं मानते, उन स्थितियों में संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ते, वही अपने जीवन में कामयाबी का द्वार भी अपने सतत संघर्ष से पा ही लेते हैं।
          जीवन अनेक प्रकार की समस्याओं से भरा हुआ है, इस जीवन में अनुकूल प्रतिकूल दोने ही परिस्थितियां अनिवार्य रूप से आती ही है, बस हम उनका सामना कैसे करते हैं ,यह महत्वपूर्ण है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सहज बने रहे, समय अनुकूल हो या प्रतिकूल, बदलता ही है। फिर जहां दृढ़ संकल्प बल हो तो प्रतिकूल परिस्थितियां भी जीवन में हमारे आगे बढ़ने का मार्ग ही प्रशस्त करती है।
                प्रतिकूल परिस्थितियों में मौन का आश्रय ले, मौन रहने का अभ्यास करें आधा घंटा या 1 घंटा  समस्त क्रिया, प्रतिक्रियाओं से मुक्त होकर भीतर की ओर विचरण करें, तब यह आपका आत्मबल बढ़ाने में सहायक होगी।
विशेष:-प्रतिकूल परिस्थितियों में मौन रहे, धैर्य रखें, समय के बीतने की  धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करें, अपने मन मस्तिष्क को सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण रखें, समय अनुकूल हो या प्रतिकूल कोई भी समय सदा नहीं रहता, भीतर से खुश रहने का अभ्यास करें, प्रतिकूल परिस्थितियों को भी जीवन संघर्ष का अनिवार्य तत्व समझें, ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखें, आत्मबल बनाए रखें।
आपका अपना,
सुनील शर्मा
जय हिंद ,जय भारत।