प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, आज की इस प्रवाह यात्रा में हम बात करेंगे, वर्तमान पर, वर्तमान से ही भविष्य, हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं ?  क्यों कर रहे हैं? उसके पीछे हमारा मुख्य उद्देश्य क्या है? 
      इन सब बातों पर जब हम गहराई से विचार करेंगे, तो हम यही पाएंगे कि हमारा भविष्य जो भी है, वह वर्तमान से ही बनता है, हम चाहे कितने भी प्रकार की कोशिश कर ले, अगर हम वर्तमान में पूर्ण सजग नहीं है, तो भविष्य में भी सजग न होंगे 
वह हमारी समस्या जस की तस  रहेगी।
          ईश्वर नियंता अवश्य है, मगर वह मूल रूप से आपके कर्म का ही प्रतिफल आपको प्रदान कर रहा है।
      इसको हम इस प्रकार समझे, जो भी व्यक्ति अपने जीवन की शुरुआत में सही तरीके से संघर्ष करता है, वह धीमे-धीमे ही सही, एक सही लय को प्राप्त कर लेता है।
     शुरुआती जीवन में हम अगर संघर्ष नहीं कर पाये तो अंत बड़ा ही विचित्र होगा।
        अतः जब भी हम जीवन को देखते हैं, तो उसे पूर्ण दृष्टि से देखें, इसके तीन चरण है, बाल्यकाल, जवानी व वृद्धावस्था, और अपने बाल्यकाल में सही दिशा में संघर्ष किया है, तो आपके जीवन का मध्यकाल वह उसके बाद की जिंदगी बड़ी ही आसान हो जाती है।
       उम्र का प्रथम पड़ाव बाल्यकाल है, बाल्यकाल में  हम अपनी एक सही सोच का निर्माण करते हैं, तो हमारा जीवन सही दिशा और जाता है, अपने जीवन में आर्थिक आधार को मजबूत करिये,
कोई कौशल या हुनर अवश्य सीखिये, अगर आप हुनर नहीं सीखते हैं, उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहतेहैं, तो फिर उसे दिशा में प्रयास करिये, खेल के क्षेत्र में केरियर बनाना चाहते हैं तो उस दिशा में जाइये, इंजीनियर बनना चाहते हैं तो उसे दिशा में जाइये,
अब जो भी कार्य कर रहे हैं उसे पूर्ण एकाग्रता से करिये, अपनी संपूर्ण ऊर्जा उसने लगाइये, समय आने पर प्रकृति उसका सही परिणाम आपको अवश्य प्रदान करेगी। 
        इस समस्या लेने के बाद उसे देने की प्रवृत्ति भी होना चाहिये, समय आने पर विपत्ति में हम किसी की मदद कर सके, हम स्वयं आर्थिक तौर पर इतने सक्षम अवश्य बने, अपने परिवार का यथायोग्य पालन कर सकें, इतनी आर्थिक मजबूती अवश्य रखें।
       बाल्यकाल  बाद फिर समय आता है, किशोर अवस्था का,
हमें कई प्रकार के विभिन्न चलो हम लुभाने लगते हैं, उसे समय में स्थिर चित्त होकर हम सही चुनाव करें, अनुभवी व्यक्तियों केसपर्क में रहे, उनके जीवन अनुभव का लाभ लें, उनके पास नित्य कुछ समय व्यतीत करें, वह अपने जीवन अनुभव से आपको परिचित करायेंगे।
         अखबार पढ़ने की, पुस्तकें  पढ़ने की आदत डालें, जीवन में अच्छी पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करें, वह आपके लिये मार्गदर्शन का कार्य करेगी, प्रातः जल्दी उठने की कोशिश करें,
उसके लिये आपको समय से सोना भी होगा।
       अपने जीवन का एक निश्चित क्रम बनाये, कुछ समय स्वयं के लिये, कुछ परिवार के लिये वह कुछ समय समाज के लिये इस प्रकार से अपने जीवन को ढालने का प्रयास करें।
       यह सभी हमें जीवन की शुरुआत से ही करना चाहिये, ताकि हमने जो नींव रखी है, उसकी अंतिम परिणति अच्छी हो। 
       निरंतर सजगता व नई चीजों को अवश्य सीखें, प्रकृति के मध्य रहे, वृक्षों को निहारे, कुछ समय शांत चित्त  से ठहरे, अपने जीवन को देखे, हम उसे किस प्रकार की दिशा दे रहे हैं, जो हम करेंगे वही हमें वापिस प्राप्त होगा।
       नित्य प्रति कोई भी प्रार्थना का अभ्यास करें, जो भी आपको अच्छी लगती हो, ईश्वर को धन्यवाद दे, उसने इतना सुंदर मानव जीवन आपको प्रदान किया है।
      अपनी संकल्प शक्ति को जागृत करें, संकल्प वान व्यक्ति अपने जीवन में कमाल करते हैं, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण "दशरथ मांझी" है, इन्होंने अपने जीवन में एक लक्ष्य धारण किया, पहाड़ को बीच में से काटकर रास्ता तैयार कर दिया, उसमें उन्हें वर्षों का समय लगा, पर संकल्प शक्ति के कारण ही वे इस कार्य को कर सके। संघर्षों से न घबराये, वे तो जीवन -पथ पर आयेंगे ही, उसके 
लिये संकल्पबद्ध हो, अपने जीवन को स्वयं दिशा प्रदान करें।

विशेष:-सार रूप में, हम वर्तमान में जो भी कर रहे हैं ,या करेंगे ,
        हमारे भविष्य का निर्माण उसी होगा, एक निश्चित पथ का चुनाव करिये वह पूर्ण दृढ़ता पूर्वक उस पर स्थिर रहिये, पूर्ण लगन से उसे कार्य को करिये, आपको शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद
प्रिय पाठक गण,
        सादर नमन, 
 आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस अद्भुत यात्रा में आप
सभी का स्वागत, आइये, आज हम संवाद करेंगे,
       कर्तव्य  व अधिकार पर, मूल ग्रंथ श्री गीता जी में एक वाक्य 
हैं, "कर्मण्येवाधिकारस्तु , मा फलेषु कदाचन।
        इसमें श्री कृष्ण भगवान स्वयं यह कह रहे हैं, मनुष्य को अपने मूल कर्तव्य कर्म का निर्वहन अवश्य करना चाहिये।
      आपका जो भी मूल कर्तव्य जो आपको मिला है ,आपने धारण किया है, उसे अपनी संपूर्ण ईमानदारी से निर्वहन करिये
     मान लीजिए कोई दुकानदार है, वह ईमानदारी पूर्वक सभी से एक सा  व्यवहार कर अपनी कमाई करें।
     इंजीनियर उसका काम पूर्ण ईमानदारी से करें, जो अधिकारी गण है वह भी अपना कार्य है, वह संपूर्ण ईमानदारी से करें।
    इस प्रकार समाज का हर वर्ग अपने-अपने मूल कर्तव्य का 
पूर्ण ईमानदारी से अगर निर्वहन करता है, तो फिर स्थितियां तेजी से सुधरेगी।
     एक राजनेता भी अपना राजनीतिक धर्म, ईमानदारी से निर्वहन करें, इस प्रकार समाज का हर वर्ग अगर अपनी अपनी जगह पर 
पूर्ण ईमानदारी से बर्ताव करें, अपने कर्तव्यों का  निर्वहन करें,
तो अधिकार तो स्वत: ही मिल जाएंगे।
     इसी प्रकार एक अध्यापक का कर्म शिक्षा देना है, छात्र का कर्म पूर्ण निष्ठा से पढ़ना है।
     इस प्रकार जब हम सभी अपने-अपने नियत कर्मों को, जो हमने स्वयं चुनाव किया है, उनका पूर्ण ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करें, यानी अपने निज कर्तव्य को पूर्ण ईमानदारी पूर्वक करने का प्रयास करें।
      जो भी मनुष्य इस प्रकार से आचरण करते हैं, अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, वे परमात्मा के निकट ही है, उसकी अनुकंपा उन सभी पर बरस रही है। 
     अपना कर्तव्य अगर हम ईमानदारी पूर्वक करते हैं, तो अधिकार हमें स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं।
      करो फल से कोई नहीं बचता, संशय रहित होकर पूर्ण निष्ठा पूर्वक अपने कर्म को करना ही ईश्वर की पूजा करना है।
      उसे सर्वव्यापी प्रभु ने सब की व्यवस्था की है, हम मनुष्य तो अपनी बुद्धिमत्ता से अपनी पूर्ति कर ही लेते हैं। 
      वह परम सृष्टा तो प्राणी मात्र का परिपालन कर रहा है, सभी का परिपालन यह सृष्टि करती है।
   वह निराकार सत्ता सभी का ध्यान रखती है, वही सूक्ष्म रूप में सभी का निर्वहन कर रही है, वही साकार रूप में सभी में समाहित है।
     जो भी मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म को विचार कर ईमानदारी पूर्वक करते हैं, उन्हें इसका अच्छा फल ही प्राप्त  होगा, इसमें कोई संशय  नहीं।
       वर्तमान समय में अधिकांश व्यक्ति अपने कर्म  में  निष्ठावान नहीं है, और फल उन्हे  सारे चाहिये, आप अपने कर्तव्य पूरे करिये,
अधिकार स्वत: ही आपको प्राप्त होगा ।
विशेष:- कर्तव्य को पूर्ण निष्ठा से करिये, आपको अपने अधिकार स्वत: ही मिल जायेंगें, यही कर्मयोग है, हर काल में यही सत्य भी है, युवा वर्ग वह सभी वर्गों से मेरा अनुरोध है, इस बात के सही मर्म को समझें वह गीता जी के सिद्धांत को जीवन में उतार लें। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, आप सभी को यह प्रवाह यात्रा निश्चित ही पसंद आ रही होगी।
      हम सभी प्रकार के उतार-चढ़ाव, संघर्ष वह कई बार अनचाही  बातें, जो आपके सामने आ जाती है, उनका क्या 
करें? 
       इसका सबसे सरल उपाय मेरी दृष्टि में तो यही है , कि हम जिंदगी को जीने का नजरिया स्वयं ही तय करें, आपका जीवन है, 
किसी और का नहीं। 
      आप जो भी फैसला जीवन में करेंगे, उनका परिणाम आपको ही प्राप्त होगा, अपनी दैनिक दिनचर्या में मेरे विचार से हमें तीन बातें अवश्य शामिल करना चाहिए, वह तीन बातें हैं, हमारा स्वास्थ्य, धन व व्यवहारिक दृष्टिकोण, सबसे पहले हमारे स्वास्थ्य की सुरक्षा, उसके उपरांत धन हम किस प्रकार अर्जन करें, वह उस अर्जन धन का किस प्रकार उपयोग करें, तीसरी जो महत्वपूर्ण बात है, वह जीवन में व्यावहारिक दृष्टिकोण, क्या संभव हो सकता है, 
क्या नहीं, आपकी परिस्थितियों इसकी इजाजत देती है अथवा नहीं, इसका सही आकलन। 
      हमारा स्वास्थ्य भी हमारी संपत्ति है,  इस पर पूर्ण रूपेण ध्यान दे, हमारे पास धन जो भी है, उसका सही तरीके से उपयोग, धन को कमाने के बाद किस प्रकार व्यय किया जाये, धन को व्यय करना भी एक सुंदर कला है, धन हो अपने लिए, परिवारक लिए 
वह आकस्मिक आपदा के लिए इस प्रकार तीन वितरण उसके करें,  वह कुछ हिस्सा दान आदि के लिए भी रखें। 
       तीसरी जो अत्यंत महत्वपूर्ण बात है, जीवन जीने के लिए, वह है पूर्णतया व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाएं, जो संभव हो, वही बात कहें, अन्यथा बाद में हमारे संबंधों में खटास आ सकती है ।
एक सधा हुआ व्यवहार हमेशा रखें, कोई कार्य अगर संभव न हो 
तो विनम्रता पूर्वक उसके लिए मना कर दें। 
      हमारे खन-पान, अभिरुचि वह निकट संबंधों का ध्यान रखें,
समय-समय पर उन संबंधों को ऊर्जा प्रदान करें, जो संबंध हमारे पहले से हैं, वह मजबूत रखें, और अगर वह कमजोर पड़ रहे हैं, 
तो सही कारण समझे वह उसे दूर करें।
    निमित्त व्यायाम को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाएं,
कुछ हमारे निजी शौक जैसे संगीत, बागवानी व वह कोई भी आपकी अभिरुचि वन्यपति क्या आपकी दैनिक दिनचर्या में शामिल करना चाहिए, ताकि हम अपनी आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाते
रहे।
अपने हर दिन को भरपूर ऊर्जा के साथ जिये।
विशेष:- दैनिक दिनचर्या स्वास्थ्य, आप की निरंतरता वह व्यवहार कुशलता इन तीनों का उचित समावेश करें, वह साथ ही अपने कोई पसंदीदा  शौक को भी जीवन में स्थान दें, क्योंकि वह शौक आपकी आंतरिक ऊर्जा में अभिवृद्धि करेगा। 

प्रिय पाठक गण,
         सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में 
आप सभी का हृदय से स्वागत है। 
      आज का मेरा विषय है, निज गुण न त्यागे। परमपिता परमेश्वर की मंगल कृपा, मां सरस्वती का आशीर्वाद, गणेश जी व लक्ष्मी जी की कृपा तीनों आप सभी पर बने रहें।
      निज गुण से मेरा तात्पर्य यह है, प्रकृति ने आपको सत्य कहने का अद्भुत गुण अगर प्रदान किया है, तो उसे किसी भी परिस्थिति में आप न त्यागे। हां, स्थिति अनुरूप सत्य को कहां प्रकट करना है, 
कहां पर नहीं, यह अवश्य विचार पूर्वक देखें, सत्य का उद्घाटन हर परिस्थिति में आवश्यक ही हो, यह भी जरूरी नहीं। 
        समय -काल, परिस्थिति अनुरूप क्या आवश्यक है, इस प्रकार की विवेकशीलता का अनुसरण हर समय करें, आपके सत्यवादी होने का सबसे अधिक लाभ यह होगा, आपकी बात को प्रमाणिकता से लिया जायेगा, सत्य कहना व उस पर पूर्ण रूप से अमल कर पान इतना आसान भी नहीं, पर जो भी इस सत्य गुण को धारण करता है, उसकी विश्वसनीयता में निश्चित ही अभिवृद्धि होती है।
       सत्यवान व्यक्ति के, उसके विरोधी भी कायल होते हैं, पर अगर आपके सत्य कहने से किसी की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचता है, तो ऐसे सत्य को पचा ले, उसे उद्घाटित न करें। 
       सर्वगुण संपन्न सब नहीं हो सकते, हम सब में कोई न कोई विशिष्ट गुण अवश्य होता  ही है, वह विशिष्ट गुण ही आपकी मूल शक्ति है, वह मूल शक्ति हमारे स्वभाव की जो भी है, वह परमात्मा ने प्रदान की है । हमारे भीतर परमात्मा ने क्या विशेष दिया है, उसे सही तरीके से परखे, मौलिक गुण ही आपकी मूल शक्ति है, उस मूल शक्ति को अवश्य पहचाने,  परमात्मा की परम अनुकंपा को जाने, उसे अहोभाव से ग्रहण करें।
      परमात्मा, आपने मुझे इस विशिष्ट गुण से उपकृत किया, यह आपका बड़ा उपकार है, इसके लिये धन्यवाद।
      अपने भीतर छिपे हुए उस विशिष्ट गुण को समझें व उसे ही अपनी ताकत बनायें ।
     इस सृष्टि में परमात्मा ने सभी को कोई ना कोई विशिष्ट गुण अवश्य दिया है, जो कि उसका मौलिक गुण है, और वह मौलिक गुण जो परमात्मा ने आपको दिया है,  मौलिक गुण जो परमात्मा ने आपको दिया है, वह उसका आपको दिया गया  अनुपम उपहार 
 है। 
    विनयशील होना भी एक गुण है, पर विनयशील होने पर भी अगर हमें इसका विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है, तो हमें अपनी आंतरिक दृढ़ता का उपयोग भी करना चाहिये, अत्यधिक विनयशीलता अगर आपके लिए नुकसानदेह हो रही है, तो उससे भी बचे ।
    समय, परिस्थिति व क्या आवश्यक है, वह उस समय की परिस्थिति को समझ कर फिर निर्णय करें।
      अपनी दृष्टि सदैव पैनी रखें, जैसे-जैसे जीवन हमारा आगे की ओर बढ़ता है, एक परिपक्वता हमारे भीतर आने लगती है। किसी का भी सम्मान करना एक गुण है, मगर स्वयं के सम्मान को भी 
उतना ही महत्व प्रदान करें, इसका उचित संयोजन करें। 
          आपकी हर समय उपलब्धता आपके लिए भी परेशानी का कारण बन सकती है, व्यवहारिक नियम अपनाते हुए उसे अपने अनुभव के आधार पर समझे, फिर निर्णय ले।
           अनावश्यक दबाव को जीवन में न सहन करें व अनावश्यक दबाव किसी पर ना डालें, सहजता पूर्वक जीवन को, 
सहज गति से आगे बढ़ने दें।
        अगर आपको अपने किसी कार्य-कलाप से भीतरी संतुष्टि मिलती है, आत्म संतोष मिलता है, तो वह कार्य आप अवश्य करें, 
नित्य प्रभु का स्मरण, कुछ समय के लिये ही सही , आप अवश्य करें। 
        नित्य परमात्मा का स्मरण कुछ समय के लिये ही सही, हम करके अगर देखें , तो परिणाम निश्चित ही आश्चर्य जनक होंगे। 

विशेष:- इस संपूर्ण लेख का सार यह है, संपूर्ण सजग रहकर चीजों को समझे, परखे, विश्लेषण करें, आत्म मंथन करें, क्या आवश्यक है ? क्या नहीं, द्वंद ना रखें। परमात्मा पर पूर्ण विश्वास हर परिस्थिति में कायम रखें। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद।
प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
 आज प्रवाह में मेरा विषय है, गरिमापूर्ण जीवन, हम सभी का जीवन अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव से गुजरता है, कई बार कोई हमारा अपमान भी कर देता है, उसे समय भी अगर हम अपने धैर्य को कायम रख सके, तो हम मानवीय गरिमा को छू लेंगे, आज के समय में सबसे बड़ा महत्व वाणी का ही है, हम अपनी वाणी से क्या कहते हैं, उस पर अमल करने की कितनी कोशिश करते हैं,
यह अधिक महत्वपूर्ण है, माना कि हम अपने जीवन में सभी की आकांक्षाओं पर खड़े नहीं उतर सकते, मगर विनम्रता पूर्वक हम किसी कार्य के लिए मना भी कर सकते हैं, जो संभव नहीं हो, 
हमारी विवेकशीलता पर बहुत सी बातें बनती व बिगड़ती है,
हमें वार्तालाप करते समय यह बोध तो अवश्य होना ही चाहिये।
        जीवन एक दिन में पूरा नहीं होता, हमें अपने दैनिक जीवन में वार्तालाप की महत्ता को समझना चाहिये, आप अपनी जगह  कितने भी सही हो, अगर वार्तालाप का गुण आप में नहीं है तो समस्या और अधिक बढ  सकती है, हम प्रतिदिन अपने दैनिक जीवन में बहुत-सी बातें सीखते भी हैं, कई बार हम वार्तालाप के महत्ता को अनदेखा कर देते हैं, हमें  वार्तालाप करते समय 
सामने वाले को भी सुनना होता है।
         कई बार हमें आपसी वार्तालाप में बहुत ही सावधानी रखने की जरूरत होती है, जब हम वार्तालाप करते हैं, तब सुना भी जाना चाहिये वह बोल भी जाना चाहिये, कभी भी संवाद एक तरफा नहीं हो सकता, एक तरफा संवाद होने पर वह अपना अर्थ ही खो देगा, जो अपने वार्तालाप की महत्ता को सही तरीके से समझते
हैं, वह कभी भी अपने मूल से हटते नहीं है।
        हम अपने जीवन में चाहे कितनी ही उपलब्धियां हासिल कर ले, मगर अगर हमारी वाणी सही नहीं है, तो वह वाणी हमारे सारे कार्य बिगाड़ भी सकती है, आपका वार्तालाप जितनी कुशलतापूर्वक होगा, उतना ही वह असर कारक भी होगा, हमें यह भी देखना होता है की जिससे हम वार्तालाप कर रहे हैं, हम उनके बराबरी के स्तर पर जाकर उनसे वार्तालाप करें, तभी कुछ सही 
नतीजे की संभावना होती है, जीवन तो हम सभी जी ही रहे हैं , मगर अपनी गरिमा को जितना संभव हो सके, हमें बचाना चाहिये
विशेष:- गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिये हमें साधनों के साथ
         व्यवहार कुशलता का ज्ञान होना भी आवश्यक है, गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिये हमें साधनों के अलावा कुछ अच्छे वह मजबूत रिश्ते भी चाहिये।
आपकाअपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद
प्रिय पाठक वृंद,
     सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, सुप्रभात, 
   मां सरस्वती का आशीर्वाद सदा बना रहे, श्री गणेश जी व माता लक्ष्मी जी, मां सरस्वती जी इन तीनों का संयुक्त आशीर्वाद मुझ पर वह आप सभी पर हो। 
    आज प्रवाह की इस यात्रा में हम बात करेंगे, मानवीय गरिमा पर, हम सभी मनुष्य हैं, भूल होना मानवीय स्वभाव है, परंतु चुप होने पर भी उसे न मानना, केवल अपनी ही है पर अड़े रहना, यह भी मानवीय गरिमा के विपरीत व्यवहार ही माना जायेगा, हमारी वाणी दरअसल वह है, जो हमारी अन्य से या तो दूरी बना देती है 
या नजदीकी बना देती है, विपरीत समय आने पर भी जो सदा विनम्र हो, सही समय में भी अपने सद्गुणों को न छोड़ें, निरंतर जो भी मानवीय गरिमा के अनुकूल हो, वह बर्ताव ही निरंतर करें, यह केवल प्रभु की मंगल कृपा मात्र से ही संभव हो सकता है। 
       मनुष्य जीवन में धन , वैभव, यह सब उसकी कृपा व आशीर्वाद मानकर सदैव विनम्र भाव से ग्रहण करें, सतत अभ्यास करते रहें , अपनी दुर्बलताओं पर हम कार्य करें , वह जो भी सद्गुण हममें व अन्य में हो, उन पर ही दृष्टि रखें, यह समस्त संसार गुण- अवगुण से युक्त है, हम अपने नीर-क्षीर , विवेक का उपयोग करें, 
सजग रहकर अपना कार्य करें, बस यही हमारी उपलब्धि है। 
      अपने कार्य को संपूर्ण ईमानदारी से करने की कोशिश करें, 
फिर उसे परमपिता पर सब भार छोड़ दें, इसका यह अर्थ नहीं है 
कि हम कोशिश ही न करें, अपनी सही कोशिश नित्य, निरंतर 
करते रहें, समावेशी भाव से कार्य करें, अपने नित्य कर्म वह जो भी कर्म आपका हो, वह संपूर्ण ईमानदारी से करने का प्रयास करें, 
वह प्रकृति निश्चित ही आपको अपने अमूल्य उपहार से नवाजेगी, 
सत्य पथ पर अडिग रहे, प्रभु से निरंतर प्रार्थना करें।
        उनके आश्रय के बिना समस्त उपलब्धियां भी किसी काम की नहीं, कृपा- शरण में ही रहें।
         अन्य शरणागति का भाव रखते हुए अहोभाव से उस परमात्मा का नित्य मंगल सुमिरण अवश्य करें, उसके कृपा- प्रसाद को नित्य अनुभव करें।
        मानवीय गरिमा को न भूले, सतत अभ्यास द्वारा, नित्य निरंतर ही उसकी कृपा में रहें।
       शरणागति जब उसकी हो जाती है, अन्य की शरण फिर जाना ही नहीं पड़ता, उसकी कृपा को अनुभव करते रहें। 
    विशेष:- हमारी वाणी द्वारा ही हम कार्य को बनाते है, या बिगाड़ते हैं, अतः वाणी का ध्यान रखें, वाणी ही कार्य को बनाती है, या बिगाड़ती है। परम भाव से प्रभु स्मरण करते रहें, मानवीय मूल्यों व गरिमा को कभी ना भूले।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद


प्रिय पाठक गण,
   सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम,
  प्रवाह की धारा नित्य बहती रहे, हम सजग हो, सजग रहे व
सजग करें, यही मूल भाव इस प्रवाह का है, 
       प्रवाह का अर्थ ही है, नित्य प्रवाहमान, आज का विषय है, 
संविधान पर जो नई बस जन्म ले रही है, धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद।
      अगर पहले हम इन दो शब्दों का अर्थ समझे, धर्मनिरपेक्षता 
यानी किसी भी धर्म का विशेष न करते हुए सभी धर्म का समान रूप से आदर करना, जो कि हमारे संविधान का मूल स्वरूप भी है,
हमारे देश में बहुभाषी, बहुआयामी प्रकृति के नागरिक निवास करते हैं, उन सभी को समान रूप से पोषण करना, दूसरा शब्द है समाजवाद, समाजवाद में हम समाजवाद शब्द का अर्थ समझे 
सम +आज= समाज , यानी इसमें भी सभी की समानता की बात कही गई है, किसी भी देश के राजनीतिक नेतृत्व का  यह दायित्व है, अगर संविधान को बल प्रदान करने के लिये कोई संशोधन अगर किया भी गया है, वह संविधान को और बल अगर प्रदान कर रहा है, तब इसका विरोध क्यों? 
         अब आते हैं, सनातन धर्म की मूल व्याख्या पर, जरा देखें 
वह क्या कहती है? हमारी संस्कृति में एक श्लोक है " सर्वे भवंतु सुखिन: , सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित दुःख भाग भवेत" अगर इस श्लोक का भी अर्थ हम देखें तो यही परिलक्षित होता है, इसमें सभी के सुखी होने की  कामना की गई है, इस प्रार्थना में भी किसी धर्म या पंथ की बात कहां कही गई है। 
        यह प्रार्थना संपूर्ण विश्व हेतु प्रार्थना है, जब हमारे देश में पहले से ही अन्य समस्याएं इतनी अधिक है उन पर ईमानदारी पूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है। 
     दूसरा उदाहरण, जब हमारे बगीचे में विभिन्न किस्म के फूल हो,
वह तभी शोभायमान  होता है, इसी प्रकार हमारे देश की विविधता ही इसकी एकता है , वह इसमें ही देश का सौंदर्य भी है।
       तृतीय उदाहरण, जब प्रकृति ने हम मनुष्यों में कोई भेदभाव नहीं किया, तब हम किस आधार पर भेदभाव की बात करते हैं, 
उसने सभी को समान रूप से पोषण किया है व करती है।
     अब बात करते हैं आज विश्व ऐसे दौर में है, जब हम सभी एक दूसरे पर आश्रित है, व्यापार- व्यवसाय, तकनीक वह अन्य क्षेत्रों में भी विश्व एक दूसरे का सहयोग कर रहा है। 
     ऐसे समय में हम भारत को अग्रणी करने के बजाय इन छोटे-छोटे वैचारिक मतभेदों के सहारे कैसे अग्रणी बनायेंगे।
    विविधता तो ईश्वर ने हमारे शरीर के भीतरी उत्पन्न कर रखी है, 
हमारे हाथ का मिशन किसी दूसरे व्यक्ति से मेल नहीं खाता, जब प्रकृति नहीं इतनी विविधता प्रदान कर रखी है, तो हम क्यों इसका विरोध करते हैं। 
       ईश्वर की दी हुई सृष्टि में यह विचार  ही असंगत है, विविधता होते हुए भी सभी को समान महत्व प्रदान करना चाहिये, दरअसल यह चेतना जागृत होना ही मानवीय धर्म के अनुकूल है, पंथ अनेक हो सकते हैं, धर्म तो एक ही हो सकता है मानवीय धर्म, क्योंकि जितने भी पंथ बने वह सब मानवीय विकास हेतु ही बने हैं।
     हमारे देश का संविधान विविधता में एकता को बल प्रदान करता है, यहां प्रांत, भाषा, बोलियां इनकी विविधता , परंतु एक राष्ट्र के रूप में इनका गठन संविधान के तहत किया गया है, अब बचकानी बातों से हम संविधान को कमजोर ना करें। 
     केवल मानवीय मूल्य व गरिमा ही सर्वोपरि होने चाहिये, इस राष्ट्र में अभी अगर कलमकार चुप रहेंगे, तो फिर हमारे हाथ में कलम का मतलब ही क्या है? 
       हमारा संविधान मानवीय मूल्यों की रक्षा करता है, भूत शोध के बाद उसे गड़ा गया है, और अगर बाद में संशोधन पर कोई अच्छी बात उसमें जोड़ी गई है, तो केवल राजनीतिक आधार पर उसका विरोध  उचित नहीं है।
      हमारे राष्ट्र की वैश्विक मंच पर अभी उपस्थित दमदार है, ऐसी विवादित बातों को बल नहीं दिया जाना चाहिये।

विशेष:-   ऐसी बातों की बजाय मानवीय मूल्यों, आर्थिक सुधार 
            वह सामाजिक प्रतिबद्धता पर बात करें तो उचित होगा,
           हमें देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति " श्री अब्दुल कलाम आजाद"
            जैसी शख्सियतों की जरूरत है, जिन्होंने राष्ट्रपति पद की               गरिमा का तो निर्वहन किया ही, राष्ट्रपति पद से हटने के 
             बाद स्कूलों में जाकर  राष्ट्र के प्रति समर्पण का जो भाव
             उन्होंने जागृत किया, वैसे विचार का समर्थन किया                     जाना चाहिये 

आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद