प्रिय पाठक गण,
         सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, आज प्रवाह में हम बात करेंगे,
जो नवजागरण पर, वर्तमान समय बड़ा ही अद्भुत समय है, 
यह समय भारतीय इतिहास में एक ऐसे नवजागरण की स्थापना 
करने वाला है, जो कि अपने आप में एक उदाहरण होगा, मूल रूप  से यह समय भारत के पुनर्गठन का समय है, इस बात की भूमिका भीतर ही भीतर स्वयं लिखी जा चुकी है, व कई मामलों में 
यह समय ऐतिहासिक होगी, समय पर वह कार्य घटेगा ही, नव जागरण  मूल्यों की पुनः प्रतिस्थापना का समय है, कई मायनों में स्थिति भीतर ही भीतर विस्फोटक हो चुकी है।
              वर्तमान समय में जो कथनी व करनी में अंतर समाज में है, वह हमारे मन में विचलन पैदा करता है, अगर संपूर्ण समाज में परिवर्तन करना है, तो हमें नैतिक मूल्यों की स्थापना अनिवार्य रूप से नई पीढ़ी में करनी होगी और यह कार्य जब उनका बचपन होता है, तभी उनके मानस मन में इसकी नी रख    दी जाना चाहिये, क्योंकि  शैशव काल में ही परिवार व समाज में जो वातावरण होता है, वह अगर हम इस प्रकार का प्रदान करें, जो सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाला हो तो समाज में एक सुखद बदलाव आयेगा।
               वर्तमान समय मैं जब हमारे युवा पीढ़ी इस देश के राजनीतिक नेतृत्व की ओर देखती है, तो कई प्रकार के विरोधाभास उसे देखने को मिलते हैं, जैसे कोई चरित्रहीन व्यक्ति 
इसका आचरण समाज के मापदंडों के अनुकूल नहीं होता , उसके बाद भी वह सामाजिक प्रतिष्ठा पाने लगता है, तो स्वाभाविक  रूप से समाज में एक नैतिक क्षरण होने लगता है।
              दुर्भाग्य से कुछ राजनेता धर्मगुरु भी ऐसे भी हैं, जिनकी नीति व नियत सही नहीं होती है, पर वे भी अपने पाखंड पूर्ण आचरण द्वारा सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त कर लेते हैं। 
       सभी राजनेता व धर्मगुरु ऐसे हैं, ऐसा मेरा कहना नहीं है, पर सामाजिक मापदंडों में जिस तेजी से केवल धन व भौतिक साधनों के प्रति लालसा बड़ी है, केवल छद्म आवरण वाले व्यक्तियों का महिमामंडन होने लगता है, जिनके आचरण सामाजिक मर्यादाओं के विपरीत है, ऐसे लोगों की मानो बाढ  सी आ गई है।
        तब ऐसे समय हमें ऐसे व्यक्तियों की पहचान करनी होगी, 
जिनके आचरण में एक नैतिक साम्यता हो, जो सामाजिक मर्यादाओं के अनुकूल हो। 
         घर में बुजुर्गों का यह यथोचित सम्मान, बराबरी वालों से सहयोग वह उम्र में जो अपने से कम है, उन्हें पर्याप्त स्नेह प्राप्त हो, ऐसे परिवार जहां भी होंगे, वे अपने परिवार को तो एकजुट रखेंगे ही, समाज में अच्छी ही बातों की प्रतिस्थापना करेंगे, इस प्रकार दोहरा लाभ परिवार व समाज दोनो को ही प्राप्त होगा।
          ऐसे परिवार में से जब कोई नेता , ऑफिसर व अन्य कोई भी कार्य करेगा, नैतिक गुना से युक्त होने पर वह समाज और परिवार में एक अच्छे वातावरण का निर्माण करेगा, जो कि वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह समय नव जागरण का समय है, हमें देश की नई पीढ़ी को नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाने से पहलेनं उसे अपने जीवन में दृढ़ता पूर्वक उतारना होगा, तब ही समझ में परिवर्तन संभव है। 
       आईये, हम सभी अपने देश के इस नवजागरण के अनूठे यज्ञ में अपनी सहभागिता प्रदान करें व भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांतों को स्वयं भी अपनाये वह परिवार व समाज में इसका प्रचार प्रसार भी करें। 
सज्जन जहां-जहां पर पूर्ण रूप से संगठित होते हैं, वहां पर दुर्जन स्वाशंध् भी परास्त होते जाते हैं। मूल्य की स्थापना पहले स्वय में,
फिर क्रमशः परिवार ,गली ,मोहल्ला, नगर , जिला ,इस प्रकार से करें। 
         देश इस नवजागरण का शंखनाद कर चका है, आइये अपने हिस्से की आहुति भी इसमें दें 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद। 
जय भारत।



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प्रिय पाठक गण,
           सादर नमन, आप सभी को मंगल प्रणाम, 
पहलगाम में जैसी कायर ना हरकत आतंकवादियों ने की है, 
इस घटना की जितनी भी करें शब्दों में निंदा की जाये ,कम है ।
      इस घटना की तह में जाने से पहले कुछ परिदृश्य पर विचार करें, आज हमारा देश एक सतत परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, 
यह परिवर्तन राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर होते ही जा रहा है,
हमारा देश एक पुनर्गठन की प्रक्रिया से गुजर रहा है, यहां पर देवी बांसुरी शक्तियों के बीच एक संग्राम चल रहा है, इस सामाजिक परिवर्तन की पदचाप की  हमें सुनाई पड़ती है, देश का वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व पूर्ण सजग है। 
             इस बात में किसी को संदेह नहीं है, ऊपर से लीडर एक अच्छा संदेश देते हैं, लेकिन निचले स्तर पर उनकी बात को किसी दूसरी तरह से जो परिभाषित कर दिया जाता है, वह ठीक नहीं है। 
हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रजी मोदी स्वयं  कई मंचों से संपूर्ण देश की जनता को संबोधित करते हुए संवाद करते हैं, मगर निचले स्तर पर उसका गलत ध्रुवीकरण स्थानीय नेतृत्व द्वारा कुछ अलग ढंग से या अपनी निजी शैली में ढाल दिया जाता है, जो कि प्रधानमंत्री जी की मूल भाषण से कुछ अलग हो जाता है, इस और अगर सर्वोच्च स्तर पर बैठे नेतृत्व की निगाह अगर पैनी होगी तो वह इसे देख सकेंगे।
       धारा 370 वह स्वच्छता अभियान मोदी जी की स्वर्णिम उपलब्धि रही है, बस एक कदम और जो भी भ्रष्टाचार वाले राजनेता या अफसर है उधर भी आप कड़ी कार्रवाई करें, चाहे वे किसी भी डाल के ही क्यों ना हो, उधर भी आप कड़ी कार्रवाई करें, मैं इस संदर्भ में इसलिए जोड़ रहा हूं की वर्तमान राजनीतिक जो नीतियां है, वह ऊपरी नेतृत्व तो सही चाहता है, मगर धरातल पर आते-आते उसका स्वरूप विकृत हो चुका होता है।
            पहलगाम की घटना में यह कहना चाहूंगा समस्त राष्ट्र आपके साथ खड़ा है, सरदार वल्लभभाई पटेलजी सी दृढ़ता का परिचय इस समय मोदी जी से है, वहां पर सेना को पूर्ण रूप से नियंत्रण तब तक के लिए दे देना चाहिये, जब तक की कश्मीर घाटी से आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया नहीं हो जाता,
इसके लिए उच्च स्तर पर उमर अब्दुल्ला जी की सरकार को भी
विश्वास लेकर, स्थानी जनता से भी संवाद करके कुछ बहुत ही कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। 
          मेरे निजी विचार में राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत पर कार्य करते हुए वहां के स्थानीय प्रशासन, सीमा सुरक्षाबलों व सेना तीनों के बीच एक समन्वय बनाकर इसका नेतृत्व से ना करें, और यह आज का राजनीतिक नेतृत्व तय करें।, आवश्यक हो तो आज संपूर्ण देश  में इस प्रकार की बात को सही ढंग से प्रसारित कर तुरंत सभी की राय भी जानी जा सकती है, मेरे विचार से  संपूर्ण देशवासी मेरी इस बात से सहमत होंगे। 
        इस चर्चा में सभी विपक्षी दलों का भी नैतिक समर्थन निश्चित ही प्राप्त होगा।
      विपक्षी दलों से भी विनम्र निवेदन इस घड़ी में सरकार के कड़े निर्णय का पक्ष ले वह राष्ट्रीय हित में संपूर्ण समर्थन करें, हमारे देश कि यह अंदरूनी ताकत रही है, इस मौके पर दलगत राजनीति से हटकर सभी विपक्षी दल सरकार का समर्थन करें, ताकि इस देश से संपूर्ण रूप आतंकवाद का सफाया हो सके, ताकि फिर किसी देशद्रोही तत्वों का इस प्रकार की घटना को अंजाम देने की कल्पना भी वह न कर सके। 
     पुनः आप सभी से निवेदन, संपूर्ण देशभक्त नागरिकों से भी निवेदन कि मेरी इस मुहिम का समर्थन करें, राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक भी है।
       कश्मीर घाटी में सेना को कार्रवाई का पूर्ण अधिकार मिलना चाहिये।
 जय हिंद 
जय भारत ।

प्रिय पाठक गण,
          सादर नमन, 
    आने वाली 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है, पहली बात तो यह
की दिवस मनाने की परंपरा तो अभी-अभी आई है, हमारी सनातन संस्कृति मैं तो यह पहले से ही प्रावधान है कि हम पांच तत्वों का पूजन ईश्वर रूप में करते आए हैं।
          पृथ्वी दिवस को मनाने का हमारा मुख्य उद्देश्य यह है पृथ्वी का जो क्षरण हो रहा है, उसे क्षरण को रोकने की दिशा में हम सार्थक पहल करें, और यह केवल एक केवल एकाकी प्रयासों से संभव नहीं। इस दिशा में हम सभी को सरकारे ,विश्व के समस्त मानव समुदाय कि यह जवाबदारी हैं कीव इस दिशा में पूर्ण गंभीरता से सोचे व प्रयास करें।
          पृथ्वी का एक नाम वसुधा भी है, ़ हमारे सनातन संस्कृति में एक मंत्र भी है, वह एक वाक्य भी है "वसुधेव कुटुंबकम" यानी पृथ्वी पर रहने वालीं संपूर्ण मानव जाति एक ही परिवार है, ऐसे उदार चिंतन से भरपूर हमारी संस्कृति रही है।
          हमारा यहां पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है, व नदियों को भी हमारे यहां माता माना गया है, इस प्रकार के भावों से समृद्ध हमारी संस्कृति रही है।
        हमारी ऐसी समृद्ध संस्कृति की विरासत रही हैं, जहां हमने 
अपनी संस्कृति में ही सबको पूजनीय व संरक्षित रखने का भाव डाल दिया है, इतनी  समृद्ध सांस्कृतिक विरासत हमें  प्राप्त हुई है।
      पृथ्वी दिवस को मनाते समय हम यह विचार करें की इतनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत होते हुए भी हमसे चूक कहां हो रही है। हमारे सारे तीर्थ स्थल या तो नदियों के किनारे हैं या पहाड़ों पर है, हमारे प्राचीन ऋषियों ने किस प्रकार अपनी सुंदर कल्पना से इसे साकार स्वरूप प्रदान किया, हमारी परंपरा में तो शुरू से ही सभी के संरक्षण का ही भाव रहा है, हम अपनी उस प्राचीन धरोहर को भूल चुके हैं, उसी के दुष्परिणाम हमें देखने को मिल रहे हैं।
अभी भी अधिक समय नहीं हुआ है हम अपनी प्राचीन संस्कृति को ठीक ढंग से समझे तो पाएंगे उसमें सब कुछ समाहित है,
किसी दिन विशेष को पृथ्वी दिवस मनाने की जगह अगर हम अपनी प्राचीन संस्कृति के पदचिन्हो पर चल सके तो हमें इस प्रकार  के दिवस मनाने की आवश्यकता ही नहीं होगी, क्योंकि हमारी संस्कृति में तो इसे शुरू से ही विशिष्ट स्थान दिया गया है।
          जब हमें यह ज्ञात है कि हमारी संस्कृति में पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है, तब तो हमारा दायित्व और अधिक बढ़ जाता है , जिस प्रकार हम अपनी जन्मदात्री मां की सेवा करते हैं,
इस प्रकार हमें पृथ्वी माता की भी सेवा करना चाहिये, केवल एक दिन पृथ्वी दिवस मनाने से ही कार्य सिद्ध नहीं होगा, वरन हमें हमारी संस्कृति को आत्मसात करके पूर्ण संकल्प से इस पर कार्य करना होगा, तभी इस दिवस की सही सार्थकता सिद्ध होंगी।
        शब्दों से अधिक कहने बजाय हम अगर इसे आचरण में उतारें तो ही इस दिवस की सार्थकता को हम अपने सही आचरण द्वारा इस दिवस की उपयोगिता को एक आंदोलन का रूप दे सकते हैं। आज संपूर्ण विश्व में जो दोहन की परंपरा चल रही है, 
वह विश्व के लिए अत्यंत ही घातक सिद्ध हो सकती है, पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह दिवस और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, पर मेरा पुनः आप सभी से निवेदन है कि हम हमारी प्राचीन संस्कृति का अध्ययन अवश्य करें , उसमें सभी बातों का सुंदर ढंग से समावेश किया गया है वह उसे एक जीवन पद्धति से जोड़ा गया है। आप सभी को पृथ्वी दिवस की अनंत शुभकामनाएं, 
      इतना कहकर अपनी बात को विराम करूंगा कि हमें कोई भी दिवस मनाने से अधिक उस पर दृढ़ संकल्प से काम करने की आवश्यकता है, केवल एक दिन किसी बात को कह देने मात्र से 
कुछ भी नहीं बदलने वाला है, हम जहां पर भी रहते हो वहां पर पूर्ण ईमानदारी से दिशा में प्रयास करें, तभी पृथ्वी दिवस को मनाने का हमारा उद्देश्य पूरा हो सकता है। 
आपकाअपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद





         सादर नमन, 
                        आप सभी को मंगल प्रणाम, आज हम चर्चा करेगे गीता- सार पर ।
          श्रीमद्भगवद्गीता श्री कृष्ण जी के श्रीमुख से निकली उत्तम वाणी है। जो कालजयी है, यह वाणी हम जब भी सुनते हैं, गीता जी का अध्ययन करते है, तो हर बार हमारे सामने एक नया आश्चर्य या गीताजी  की विशेषता हमारे सामने आती है।
        भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से निकली यह अद्भुत वाणी हमें हमेशा मार्गदर्शन प्रदान करती है।
         क्योंकि यह अनंत काल बाद भी सार्वभौमिक है, गीता जी में सबसे अधिक महत्व स्वकर्म  पर दिया गया है , भगवान श्री कृष्णा गीता जी में स्पष्ट संदेश देते हैं कि स्वकर्म से बढ़ कर कोई भी धर्म नहीं है।
         स्वकर्म से  उनका आशय एक डॉक्टर के लिए उनका सोकर अपने मर्जी की बेहतर देखभाल व चिंता करना है।
      वहीं  एक खिलाड़ी का कर्म जो भी खेल उन्होंने चुना है उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करना है। अंत में परिणाम चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल। 
       माता का धर्म बच्चों का सही इलाज लालन-पालन करना है,
उन्हें उचित शिक्षा देकर समाज में अपनी स्वयं के बलबूते स्थापित करना है।
      एक राजनीतिक नेतृत्व का  कार्य समाज के सभी वर्गों को लेकर चलना है, खासकर वंचित वर्ग व मजदूर वर्ग जो कमजोर 
है, उन्हें भी समाज की मुख्य धारा में स्थापित करना है।
       इस प्रकार से गीताजी हमें स्वकर्म को सही ढंग से परिपालन करने हेतु प्रे    अगर समाज के सभी वर्ग गीता सार को इस प्रकार से अपने जीवन में अगर विवेकपूर्ण ढंग से आत्मसात कर लें तो लगभगअधिकतम समस्या का समाधान  हम कर सकते हैं, इस प्रकार सही दिशा में  समाज के सभी व्यक्ति  गीता सार का अनुसरण करें तो  समाज में बदलाव संभव है।
     अर्जुन भी जब  थक-हार कर युद्ध के मैदान में हताश होकर 
बैठ जाता है, उसके दुर्बल मन में यह भाव आ जाता है कि यह
तो मेरे अपने संबंधी है, इनसे  मैं कैसे युद्ध करू, तब श्री कृष्ण 
अर्जुन को प्रेरित करतै हैं , कि तुम क्षत्रिय हो, अन्याय के विरुद्ध हथियार उठाना तुम्हारा धर्म है।
        वह आंतरिक रूप से तो पराजय को प्राप्त हो चुके हैं, वह कहते हैं अर्जुन, युद्ध कर, हताश व  निराश न हो, पूर्ण उत्साह से
उनके विरुद्ध हथियार उठा व उन्हें परास्त कर।
       वह अपनी अन्याय व दमनकारी नीतियों से तो वैसे ही परास्त हो  गये हैं, वह कहते हैं अर्जुन तू तो निमित्त मात्र  है, बस अपने
स्वकर्म को अंजाम दे वह शेष मुझ पर छोड़ दे। 
          वे गीता में इस बात की स्पष्ट घोषणा करते हैं, यतो धर्म ततो जय, इस प्रकार अर्जुन को प्रेरित करते हुए युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण अपना पांचजन्य शंख बजाते हैं  वह अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करते हैं। 
          भगवान श्रीकृष्ण गीताजी में स्पष्ट घोषणा कर रहे कर 
रहे हैं कि दमन वह अन्याय करने वालों के साथ नहीं वरन 
अन्यायकारी शक्तियों को जो परास्त करने का जो बीड़ा उठाते हैं,
वे सदैव उनके साथ ही खड़े होंगें।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।
प्रिय पाठक गण,
           सादर नमन, 
      आप सभी को मंगल प्रणाम, हम सभी के पास लगभग समान
समय ईश्वर ने दिया है, गणपति की ओर से हमें सूर्य ने रोशनी, चंद्रमा ने चांदनी, वृक्षौ से प्राणवायु , आकाश से वर्षा का जल,
पृथ्वी  से उत्पन्न समस्त खाद्य पदार्थ, भूमि के नीचे से निकलने वाले समस्त खनिज पदार्थ, नदियों पानी, इस प्रकार प्रकृति ने मनुष्य को जितने भी पदार्थ या उपहार दिये है, उन सभी के प्रति हमें ईश्वर का कृतज्ञ होना चाहिये।
     पर क्या हम हमारी प्रार्थना में उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं  कि हे प्रभु, जो यह आपने समस्त हमें उपहार प्रदान किए हैं, उनका कोई मूल्य भी हमें उसे चुकाना नहीं होता,  ईश्वर की  और से तो यह सभी को समान रूप में प्राप्त हुए हैं, हां पर मनुष्य ने अपने स्वार्थवश इनका आसमान वितरण आपस में कर लिया है, 
और हमें जो दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं वहां इसी बात के है।
अगर मनुष्य अपने साधनों का समुचित उपयोग आपस में मिल बांटकर करें तो कभी भी उन्हें किसी प्रकार के साधनो की कमी नहीं होगी।
          जब हम सभी को समान रूप से उसका वितरण उस परमपिता द्वारा किया गया है, तब हम कैसे इस बात का निर्धारण करते हैं कि उसके वितरण की व्यवस्था हमारे हाथ में है, इन साधनों का समान रूप से सभी के लिए उपलब्ध होना ही इस बात का संकेत है, की सारी व्यवस्था प्रकृति द्वारा ही अनूठे ढंग से रची गई है, जिसे हम यह रहस्य सही ढंग से समझ लेंगे, हमें कभी भी अभाव महसूस नहीं होगा।
          यह भी उसे परमपिता की ही कृपा है किस बात को कुछ अंशों में मै समझ सका हूं, केवल अनन्य शरणागति द्वारा ही यह 
संभव है , तभी हम अपनी आंतरिक अशांति को हटा सकते है, जब हम इस नियम को सही प्रकार से समझ लें।
         जब हम उसकी शरणागति को अपना लेते हैं, उसे परमपिता परमेश्वर की ओर से भी हमारी ओर अनन्य  कृपा का झरना बहने लगता है। हमारे  दैनंदिन जीवन चर्या में एक अलग ही परिवर्तन को हम महसूस कर पाते हैं। 
         आवश्यकता पूर्ण ईमानदारी से , निष्ठा पूर्वक समर्पण की 
हैं, जैसे ही हम अपनी आंतरिक ऊर्जा उस परमेश्वर से जोड़ते हैं,
एक अद्भुत संचार हमारे भीतर होने लगता है, मानो स्वयं प्रभु ही मार्गदर्शन दे रहे हो।
       जितनी गहराई से हम महसूस करेंगे, उतनी ही तेजी से परिवर्तन हमारी वैचारिक स्थिति में होगा। समय हम सभी के पास उतना ही है, साधन भी प्रकृति की ओर से सभी को दिए गए हैं, मगर उनके उपयोग का हम सभी का तरीका भिन्न-भिन्न है। 
       हमारे जीवन में बाह्य व आंतरिक समृद्धि दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण है, मानो एक ही सिक्के के दोनों पहलू है, जैसे हम पूर्ण समग्रता से उसे परमात्मा से अपनी ऊर्जा को जोड़ते हैं, उधर से भी उसी प्रकार से सकारात्मक ऊर्जा का बहाव हमारी और होने लगता है, जब यह घटना हमारे जीवन में स्व-स्फूर्त यानी अपने आप घटने लगे, तब हम यह मान लें कि हमने अनन्य शरणागति पा ली है।
          हम जो भी कार्य करें, उसे परम अहोभाव से, प्रसन्न चित्त 
भाव से करें, फिर हम पाएंगे कि उसकी कृपा प्रसाद हमारे भीतर कैसे गहरे उतर जाता है, हमारे भीतरी स्पंदन बदलने लगते हैं, 
यह सब मेरी  निजी अनुभूति भी है।
         जिसे मैं आप सभी से साझा कर रहा हूं।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत, 
जय हिंद
प्रिय पाठक गण,
            सादर नमन, 
          आप सभी को मंगल प्रणाम, मेरी यह विचार यात्रा आप सभी को कैसी लग रही है ,अवश्य बतायें ।
          हम सभी का जीवन एक बहती धारा की तरह है, इस जीवन के कई विभिन्न आयाम है, कितने अधिक आयाम होंगे, उतनी बहुमुखी प्रतिभा के आप धनी होंगे ।
        जीवन की शुरुआती दौर में हम गुजरते हैं, तब एक हम अलग आयाम से गुजरते हैं, अपने बचपन में  कई व्यक्तित्व ऐसे होते थे, वे ता उम्र के लिए आपके मानस प्रबल पर सदैव के लिए अंकित हो जाते थे , जीवन ऊर्जा से भरपूर कोई भी व्यक्तित्व हमें आकर्षित करता ही है, तमाम व्यक्तित्व से प्रभावित होते हुए या उन आयामों में गुजरते हुए भी हम हमारे बालमन में विभिन्न आयामों की सृष्टि कर चुके होते हैं ।
        समय बीतने के साथ-साथ हम विभिन्न व्यक्तियों के संपर्क मे आते हैं, ज्ञानार्जन कभी खत्म नहीं होता,, हम सीखने जाते हैं, अनुभव बढ़ता जाता है, पर बहुदा हमें बचपन वाला आयाम  ही अधिक लुभाता है।
       कई प्रकार के विभिन्न आयामों से गुजरते हुए हम भी धीरे-धीरे बहुआयामी हो जाते हैं। 
        बचपन की सादगी, सहजता, बालपन, जीवन का एक खूबसूरत आयाम है, पर बचपन हमेशा नहीं रहता, पर उससे जुड़ी यादें सबसे अधिक हमारे जीवन को प्रभावित करती है।
      उसके बाद  ही आती है,  हमारी किशोर अवस्था, यह हमारे जीवन का सबसे नाजुक मुकाम व आयाम होता है, क्योंकि यही  वह समय है, जब हम अपने जीवन में नए आयामो को गढ़ते हैं।
इस नाजुक मोड़ को अगर हम संभाल लेते हैं तो हम हमारे जीवन में एक नए आयाम को जन्म देते हैं, इस समय में दिए गए अनुकूल और प्रतिकूल फैसले ही हमारे जीवन की धारा को तय करते हैं, क्योंकि इस समय में लिए गए सटीक निर्णय ही हमारे जीवन में एक सुखद भविष्य का निर्माण करते हैं।
   हम अपने जीवन में  अपनी शिक्षा प्राप्त करने के दौरान विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं से गुजरते हैं, वह सभी प्रकार की विचारधाराओं में से कुछ ना कुछ ग्रहण करते हुए अपने जीवन की यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।
            जीवन के इस खूबसूरत सफर में हमें सभी प्रकार के खट्टे मीठे अनुभव आते हैं, इस प्रकार से जीवन में हम विभिन्न आयामों से गुजरते हुए क नये आयामो का निर्माण करते हैं।
आपका अपना 
 सुनील शर्मा 
जय हिंद, 
जय भारत।
    


सुप्रभात, 
         आप सभी का दिन मंगलमय हो, आज हम बात करेंगे स्वयं दिशा तय करें, मेरे लेखों के जरिए आप मेरे विचार से तो परिचित होते ही जा रहे हैं ।
               जीवन में किसी भी कार्य को करने के लिए हम सबसे पहले उसे कार्य को क्यों कर रहे हैं, उसके पीछे हमारा क्या उद्देश्य है, जो भी कार्य हम कर रहे हैं, उसे कार्य का क्या परिणाम होगा।
                 इस प्रकार से मंथन करने के बाद हम उसे कार्य को अगर करते हैं तो कई बातें हमारे सामने बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर हमारी अभिरुचि कृषि में है, उसमें हम किसी प्रकार का कार्य करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमारे पास क्या संसाधन हैं, उन संसाधनों का हम किस प्रकार बुद्धिमत्ता पूर्वक उपयोग करते है।
                 जैसे हमारे पास कृषि भूमि तो है, पर उन्नत बीज व खाद तथा समयबद्धता से हम कार्य करेंगे तो परिणाम भिन्न होंगे।
कृषि में भी फलदार वृक्षों, सब्जियां, अनाज, फूलों की खेती, वनस्पतियों की खेती, मसाले की खेती, इस प्रकार हमारी रुचि किस प्रकार की खेती में है, क्या हमारी जमीन उसे प्रकार के लिये उपयुक्त है, इस प्रकार विचार कर हम कार्य करते हैं तो हमें परिणाम अच्छे प्राप्त होंगे।
                  दूसरा उदाहरण अगर हम राजनेता बनना चाहते हैं 
तो एक राजनेता में सबसे बड़ी खूबी तो संवाद की होना चाहिये।
राजनीति में आप कितनी कुशलता से संवाद करते हैं, यह सबसे अधिक मायने रखता है। 
                  हम स्वयं अपने आप से पूछे कि हमारी सबसे अधिक रूची किस क्षेत्र में है, वह उसके बाद हम अपनी समस्त शक्ति व  समय व विचार तथा उसकी बेहतर योजना इन सब पर  हम कार्य करेंगे, उतने ही अपेक्षित परिणाम आपको उसे क्षेत्र में प्राप्त होंगे।
            हमारी अभिरुचि जिस क्षेत्र में सबसे अधिक है, उसने हम दिल लगाकर कार्य करते हैं, फिर अगर हम दिल से उस कार्य को करेंगे तो फिर हमारे लिए समय भी बाधा नहीं होगा, क्योंकि जिस क्षेत्र में हमारी रुचि है, उस क्षेत्र  में कार्य करने पर हमें आनंद भी प्राप्त होता है।
      इस प्रकार जब कोई भी निर्णय हम स्वयं करते हैं तो उसकी जवाबदेही  भी हमारी होती है, पूर्ण जवाबदेही  से अपनी कार्ययोजना पर आप कार्य करें। आपकी राह में आपका आत्मविश्वास ही आपकी सफलता की सर्वप्रथम कुंजी होगी।
           ऐसा कोई भी कार्य नहीं है, जिसे हम पूर्ण मनोयोग से करें और हमें परिणाम न मिले, हमारी दिशा हंस स्वयं तय करें वह दशा बदलने के लिए जिस दिशा में हम जाना चाहते हैं अथवा जो भी कार्य क्षेत्र हम अपनाना चाहते हैं, उसका अधिकतम  ज्ञान जहां से प्राप्त हो, वह हासिल करें। 
           इस प्रकार आप जीवन में तो सफल बनेंगे ही, कई व्यक्तियों के लिए प्रेरणास्रोत भी होगेे।
        विशेष:- जब आप स्वयं किसी भी कार्य को करने का मानस बनाते हैं, कार्य योजना तय करते हैं, अपनी अभिरुचि को ध्यान में 
रखकर आप कार्य करते हैं, तो आदि सफलता आपकी उसी समय तय हो जाती है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।