प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम, प्रवाह की इस मंगलमय यात्रा में
आप सभी का हृदय से स्वागत है।
आज का मेरा विषय है, निज गुण न त्यागे। परमपिता परमेश्वर की मंगल कृपा, मां सरस्वती का आशीर्वाद, गणेश जी व लक्ष्मी जी की कृपा तीनों आप सभी पर बने रहें।
निर्गुण से मेरा तात्पर्य यह है, प्रकृति ने आपको सत्य कहने का अद्भुत गुण अगर प्रदान किया है, तो उसे किसी भी परिस्थिति में आप न त्यागे। हां, स्थिति अनुरूप सत्य को कहां प्रकट करना है,
कहां पर नहीं, यह अवश्य विचार पूर्वक देखें, सत्य का उद्घाटन हर परिस्थिति में आवश्यक ही हो, यह भी जरूरी नहीं।
समय -काल, परिस्थिति अनुरूप क्या आवश्यक है, इस प्रकार की विवेकशीलता का अनुसरण हर समय करें, आपके सत्यवादी होने का सबसे अधिक लाभ यह होगा, आपकी बात को प्रमाणिकता से लिया जायेगा, सत्य कहना वह उस पर पूर्ण रूप से अमल कर पान इतना आसान भी नहीं, पर जो भी इस सत्य गुण को धारण करता है, उसकी विश्वसनीयता में निश्चित ही अभिवृद्धि होती है।
सत्यवान व्यक्ति के, उसके विरोधी भी कायल होते हैं, पर अगर आपके सत्य कहने से किसी की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचता है, तो ऐसे सत्य को पचा ले, उसे उद्घाटित न करें।
सर्वगुण संपन्न सब नहीं हो सकते, हम सब में कोई न कोई विशिष्ट गुण अवश्य होता ही है, वह विशिष्ट गुण ही आपकी मूल शक्ति है, वह मूल शक्ति हमारे स्वभाव की जो भी है, वह परमात्मा ने प्रदान की है । हमारे भीतर परमात्मा ने क्या विशेष दिया है, उसे सही तरीके से परखे, मौलिक गुण ही आपकी मूल शक्ति है, उसे मूल शक्ति को अवश्य पहचाने, उसे परमात्मा की परम अनुकंपा को जाने उसे अहोभाव से ग्रहण करें।
परमात्मा आपने मुझे इस विशिष्ट गुण से उपकृत किया, यह आपका बड़ा उपकार है, इसके लिये धन्यवाद।
अपने भीतर छिपे हुए उसे विशिष्ट गुण को समझें वह उसे ही अपनी ताकत बनायें
इस सृष्टि में परमात्मा ने सभी को कोई ना कोई विशिष्ट गुण अवश्य दिया है, जो कि उसका मौलिक गुण है, और वह मौलिक गुण जो परमात्मा ने आपको दिया है, मौलिक गुण जो परमात्मा ने आपको दिया है, वह उसका आपको दिया गया अनुपम उपहार
है।
विनयशील होना भी एक गुण है, पर विनयशील होने पर भी अगर हमें इसका विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है, तो हमें अपनी आंतरिक दृढ़ता का उपयोग भी करना चाहिये, अत्यधिक विनयशीलता अगर आपके लिए नुकसानदेह हो रही है, तो उससे भी बचे ।
समय, परिस्थिति व क्या आवश्यक है, वह उस समय की परिस्थिति को समझ कर फिर निर्णय करें।
अपनी दृष्टि सदैव पैनी रखें, जैसे-जैसे जीवन हमारा आगे की ओर बढ़ता है, एक परिपक्वता हमारे भीतर आने लगती है। किसी का भी सम्मान करना एक गुण है, मगर स्वयं के सम्मान को भी
उतना ही महत्व प्रदान करें, इसका उचित संयोजन करें।
आपकी हर समय उपलब्धता आपके लिए भी परेशानी का कारण बन सकती है, व्यवहारिक नियम अपनाते हुए उसे अपने अनुभव के आधार पर समझे, फिर निर्णय ले।
अनावश्यक दबाव को जीवन में न सहन करें व अनावश्यक दबाव किसी पर ना डालें, सहजता पूर्वक जीवन को,
सहज गति से आगे बढ़ने दें।
अगर आपको अपने किसी कार्य-कलाप से भीतरी संतुष्टि मिलती है, आत्म संतोष मिलता है, तो वह कार्य आप अवश्य करें,
नित्य प्रभु का स्मरण, कुछ समय के लिये ही सही , आप अवश्य करें।
नित्य परमात्मा का स्मरण कुछ समय के लिये ही सही, हम करके अगर देखें , तो परिणाम निश्चित ही आश्चर्य जनक होंगे।
विशेष:- इस संपूर्ण लेख का सार यह है, संपूर्ण सजग रहकर चीजों को समझे, परखे, विश्लेषण करें, आत्म मंथन करें, क्या आवश्यक है ? क्या नहीं, द्वंद ना रखें। परमात्मा पर पूर्ण विश्वास हर परिस्थिति में कायम रखें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत,
जय हिंद।