प्रिय पाठक गण,
       सादर नमन, 
 आप सभी को मंगल प्रणाम, हम जितना अधिकतम समय अपने आप को देंगे, स्वयं से संवाद स्थापित करेंगे, हमारे अंतरचक्षु खुलने लगेंगे, हम बाह्य जगत की यात्रा तो नित्य करते हैं, हमने अपने आंतरिक जगत की यात्रा कब की थी, कब हमने स्वयं से संवाद स्थापित किया था, कितना समय हम स्वयं को, कितना परिवार
को, कितना समाज को देते हैं, क्या कभी हमने इस पर विचार किया है?
तो हमें मंथन करना होगा, आप अपना स्वयं का मंथन करिये,
जिंदगी की आपा-धापी में हम किधर जा रहे हैं, जिधर सारी दुनिया दौड़ रही है, क्या हम भी उधर ही दौड़ रहे हैं, या कुछ पल ठहर कर अपने जीवन को एक व्यवस्थित आकार हम दे रहे हैं।
        जैसे ही हम अपने- आप को समय देते हैं, हमें वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता है, कितना स्वयं के लिये, कितना परिवार के लिये, कितना समाज के लिये, इस प्रकार हम इन तीन बातों को
अपने जीवन में सही ढंग से समझ सके तो स्वयं  व परिवार यह दो मूलभूत इकाई , इन पर अगर हमने सही कार्य किया तो तो समाज स्वमेव ही बन जायेगा, स्वयं  व परिवार इन दोनों पर ईमानदारी से कार्य करने की उपरांत ही हम समाज से रूबरू होते हैं, आप यकीन माने, अगर आपने पूर्ण ईमानदारी पूर्वक इसे जिया है 
या जीने की कोशिश की है, तो परिणाम बहुत ही आशाजनक
होगे।
जितना हम गहरा मनन- चिंतन करते हैं, द्वार स्वयं खुलने लगते हैं, 
यह मेरे निजी जीवन का भी ऐसा स्व अनुभूत प्रयोग है, जिसके आशजनक परिणाम मुझे अपने जीवन में प्राप्त हुए हैं, पूर्ण ईमानदारी पूर्वक जैसे ही हम अपने जीवन को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं, हमारा स्वयं का जीवन तो सुखद होता ही है, हम हमारे आसपास जो हमारा परिवार है, हमारे आसपास का समाज 
हैं, हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति को देखकर लाभान्वित होता है, हमें तो अपने जीवन में समस्त लाभ प्राप्त होते ही है, हमारे साथ जो है,
उन्हें भी इसका लाभ प्राप्त होता है।
        इस प्रकार हम अपने जीवन को व्यवस्थित करते हुए परिवार व समाज को भी सही दिशा की और अग्रसर कर पाते है। अगर हमारा चिंतन, मनन सही होगा तो कार्य की दिशा भी निश्चित ही सही होगी व परिणाम भी अच्छे प्राप्त होंगे।
       हम समाज से केवल शिकायत न करें, पहले स्वयं को, फिर परिवार को जीवन मूल्यों की शिक्षा दें, आज का परिवेश भले ही बदला हो, आंतरिक स्थिति तो हमें ही सुधारनी होगी , वह जितनीअधिक व्यवस्थित होगी, परिणाम भी सही प्राप्त होगे।
        यह मैंने स्वयं अपने जीवन में किया है वह इसके उत्तम परिणामों को प्राप्त किया है, पर  हमारा जीवन केवल हमारा ही ना होकर इस संपूर्ण अस्तित्व के प्रति जवाबदेह हैं, इसलिए मैंने इन लेखो के माध्यम से समाज को अपनी ओर से कुछ देने का प्रयास किया है।
जब हम अपने आंतरिक जुड़ाव को सही दिशा की और मोड़ देते हैं, उतने ही आप परिपक्व होते हैं वह आपको मार्ग भी प्राप्त होता है।
मेरी यह यात्रा जो मेरे लिए तो फलप्रद साबित हुई है।
      मेरे स्वयं के अनुभव इस लेख में समाहित करने का मुख्य उद्देश्य ही मेरा यह है कि मुझे जो लाभ जीवन में प्राप्त हुए, वह आप सभी को भी प्राप्त हो। 
   सादर प्रणाम। 
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।


प्रिय पाठक वृंद,

       सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
        पूर्ण विश्वास है, मेरी यह विचारों की प्रवाह श्रृंखला आपको अच्छी लग रही होगी, इसी कड़ी में आज प्रस्तुत है यह लेख।
       स्वयं के भीतर आये।
हम सभी अपने दैनंदिन जीवन में विभिन्न अनुभव से गुजरते हैं, 
खट्टे-मीठे , उतार- चढ़ाव, आशा -निराशा, जय-पराजय ऐसी विभिन्न प्रकार के मनोभावों से हम अपने जीवन में गुजरते हैं, 
       जीवन के इस सफर में हमारी कई व्यक्तियों से मुलाकात होती है, जिनमें से कुछ का व्यक्तित्व हमारे जीवन में गहरी छाप छोड़ जाता है, इस जीवन सफर में निजी अनुभव के माध्यम से
हम निरंतर गुजरते जाते हैं, और नित्य नये अनुभवों का खजाना हमारे पास बढ़ता जाता है, और हम स्वाध्याय द्वारा जो प्राप्त
करते हैं, वह हमारे जीवन की एक अमूल्य धरोहर है, हम में से हर एक व्यक्ति की जीवन शैली भले ही अलग हो, मगर हमारे अनुभव भिन्न-भिन्न होंगे ही,  जब उन निजी अनुभवों से हम गुजरते हैं, 
तब हम सभी का अनुभव अलग-अलग प्रकार का होगा।
        मेरी नजर में स्वाध्याय का अर्थ है, स्वयं का अध्ययन, हम जितना अपने आप को व्यवस्थित रखेंगे, उतना ही हमारे जीवन में 
तरक्की के सोपान खुलेंगे।
           हमें अपने जीवन में कई प्रकार के बंधनो का सामना भी करना पड़ता है, कहीं मित्रता का बंधन, कहीं हमारे स्वयं के स्वभाव का अध्ययन, कहीं राष्ट्र का बंधन, कहीं हमारे दायित्वों का बंधन, इन सब बंधनो को जीते हुए भी हमें हमारे जीवन यात्रा पूर्ण करनी ही होती है।
       इन सब बंधनो को जीते हुये एक खालीपन सा जीवन में
बना रहता है, वह क्यों है, किस कारण से है, उसकी खोज में ही 
हमारे जीवन का अधिकांश हिस्सा गुजर जाता है, हमें हमारे जीवन ऊर्जा  अधिकांश समय हम ऐसे कार्यकलापों में निकाल देते हैं, 
जिनका हमारे जीवन की प्रगति से कोई लेना देना नहीं होता,
हम हमारे जीवन में क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर हमें स्वयं ही खोजने होते हैं।
       क्या कभी किसी दिन हमने कुछ समय ठहरकर अपने आप से भी संवाद किया है, जो भी हम कर रहे हैं, उसके पीछे हमारा मुख्य उद्देश्य क्या है, या हम यूं ही बगैर किसी उद्देश्य के जीवन को गुजारना चाहते हैं। 
         सभी से संवाद करियै, इसमें भी कोई बुराई नहीं, पर जब आप सबसे संवाद कर रहे हो, तो क्या हमें अपने आप से भी संवाद स्थापित नहीं करना चाहिये।
        जीवन भर हम दूसरों से ही संवाद करते रहे , इतना संवाद हमने अपने आप से पूर्ण ईमानदारी से किया होता या अभी भी कर ले, तो जीवन की दशा व दिशा दोनों ही परिवर्तित हो सकती
 है।
सभी प्रकार के विचारों को कुछ समय रोककर कुछ समय केवल मौन हो जाये तो भीतर से ही एक अद्भुत ऊर्जा का संचार हमारे भीतर होने लगेगा 
पूर्ण ईमानदारी से जब हम अपने आप से संवाद स्थापित करते हैं, 
तो वह आंतरिक प्रकाश जो हमारे भीतर ही विद्यमान है, उसे और हमारी दष्टि पहुंचती है व जीवन जो हम जी रहे हैं, उसमें क्या 
आवश्यक सुधार हमें करना है, हमें स्वयं ज्ञान होने लगता हैं।
         जितनी   ईमानदारी से हम सभी से संवाद स्थापित करते हैं,
उतनी ही ईमानदारी से हम स्वयं से भी संवाद स्थापित करें, सारे प्रश्नों के उत्तर हमारे पास ही है। 
       आपका अपना 
        सुनील शर्मा 
         जय भारत, 
          जय हिंद 


प्रिय पाठक गण,
           सादर नमन, 
आप सभी को  मंगल प्रणाम, आप सभी को मेरी यह लेखनी नहीं किस प्रकार की लगती है, आप मुझे व्यक्तिगत रूप से संपर्क करके भी यह बता सकते हैं, मेरी कोशिश यह है कि मेरी लेखनी सीधे आपसे संवाद करें, मेरी पूर्ण कोशिश होती है, जो भी लिखूं,
वह हृदय से लिखू।
    आते हैं आज के विषय पर , खेल जगत में भारतीय किकेट से जोड़ी दो महान हस्तियों का एक के बाद एक केवल सप्ताह भर के अंतराल में टेस्ट क्रिकेट से अलविदा कहना, जी हां, बात कर रहा हूं विराट कोहली व रोहित शर्मा जी की , भारतीय क्रिकेट के खेल के दो दिग्गज खिलाड़ियों का इस प्रकार एक के बाद एक टेस्ट क्रिकेट कोअलविदा कह देना, भारतीय क्रिकेट जगत की का एक
अपूरणीय क्षति है, आप दोनों ही खिलाड़ियों की टेस्ट क्रिकेट से
हिंदी कहानी ऐतिहासिक पारियां है, भारतीय क्रिकेट खेल जगत मे
इन दोनों ही नामो का एक लंबे समय तक , उनकी आक्रामक 
क्रिकेट खेलने के लिए याद रखा जायेगा, दोनों ही खिलाड़ी 
अपने आक्रामक अंदाज के लिये हमेशा पहचाने जायेंगे।
           भारतीय क्रिकेट की शानदार परंपरा के वाहक के रूप में 
अपने अपने देश विदेशवासियों को अपने खेल से रोमांचित किया है, उनका इस तरह से एक के बाद एक टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहना भारतीय क्रिकेट प्रेमियो को रास तो नहीं आया है।
            अपनी टेस्ट क्रिकेट की यात्रा के दौरान क्या आप दोनों ने
कई उल्लेखनीय पारियां खेली हैं, तब नहीं क्रिकेटरों की जितनी भी तारीफ की जाये, कम है, खासतौर से आपके खेलने का आक्रामक अंदाज क्रिकेट प्रेमियो को हमेशा याद  रहेगा।
      खेल के मैदान में एक लंबे समय तक निरंतर खेलते हुए 
अपनी गहरी छाप छोड़ देना,  आप दोनों खिलाड़ी इसकी एक अनुपम मिसाल  है।
       जिस समर्पण भाव से आपने अपने क्रिकेट धर्म को निभाया, 
वह आपकी बेहतरीन बल्लेबाजी में झलकता है, आप दोनों का ही 
भारतीय क्रिकेट जगत में अमूल्य योगदान है।
      आप दोनों के नाम विश्व क्रिकेट हो भारतीय क्रिकेट में सुनहरे 
अक्षरो में दर्ज हो गया है।
    आप दोनों खिलाड़ियों के स्वभाव में एक विशेषता है, उनका 
जुझारूपन, कभी हार ना मानना, यह कोई आप दोनों से सीखें।
     आप दोनों हीं खिलाड़ियों का हृदय  से धन्यवाद।
भारतीय क्रिकेट में आपका योगदान अविस्मरणीय है।
     पुनः आप दोनों भारतीय क्रिकेटरों को  अपनी  अविस्मरणीय 
टेस्ट पारियों के लिये वह देश का इतने लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट में नेतृत्व करने के लिये हृदय से धन्यवाद, आपने भारतीय क्रिकेट की शानदार परंपरा को नए आयामों तक पहुंचाया।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद। 

 
प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम,
मुझे पूर्ण विश्वास है, आप सभी को मेरे द्वारा लिखित लेख, जो लिखना होकर आपसी संवाद है, पसंद आ रहे होंगे।
        आज का हमारा विषय है, विश्व परिवार दिवस, तो चलिए चलते हैं आज के सफर पर, इस माह की 15 तारीख को विश्व परिवार दिवस मनाया जा रहा है, यह अभी-अभी चलन हुआ है,
की विभिन्न विषयों पर किसी विशेष दिन को हम किसी दिवस के नाम से संबोधित करने लगे हैं।
          अब विश्व परिवार के बारे में हम भारतीय संस्कृति का अवलोकन करते हैं, क्या कहती है? हमारी अपनी संस्कृति, 
हमारी संस्कृति में एक वाक्य है"वसुधेव कुटुंबकम" यानी संपूर्ण विश्व यह भूमंडलपर रहने वाले समस्त प्राणी जो भी है, सभी एक परिवार है।
हमारी प्राचीन संस्कृति में तो पहले से ही संपूर्ण विश्व को एक परिवार ही माना गया है। 
     पहले हमारे यहां संयुक्त परिवार होते थे, संगठन होता था,
अब यह परिपाटी धीरे-धीरे हट रही है। 
      यह संपूर्ण विश्व आपस में जुड़ा हुआ है, पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु यह पांच तत्व संपूर्ण विश्व में व्याप्त हैं, व यह सभी का समान रूप से पोषण करते हैं , मनुष्य मात्र में किसी भी प्रकार का भेड़ कभी प्रकृति ने किया ही नहीं, वह तो सर्वत्र सबको समान रूप से उपलब्ध है, मनुष्य ही नहीं, वरन् पृथ्वी पर रहने वाले अन्य वन्य जीव, जल में रहने वाले जलचर, आकाश में विचरण करने वाले प्राणी, छोटे से छोटे जीव जंतु यह सभी कहीं न कहीं आपस में एक सामंजस्य द्वारा जुड़े हुए हैं।
       मनुष्य में सबसे अधिक बुद्धिमत्ता होने के कारण वह हर प्रकार की योनि से श्रेष्ठ है, वह चाहे तो निर्माण कर सकता है, वह चाहे तो ध्वंस, मनुष्य की प्रज्ञा जागृत होने पर वह निर्माण की ओर ही जायेगा, प्रकृति ने एक दिव्य सतुलन अपने आप ही रच रखा है, जिसे हम केवल अपने निजी स्वार्थ के कारण समझ नहीं पाते हैं, 
मनुष्य का अत्यधिक लालच वह प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहारों का 
अंधाधुंध दोहन , उनके संरक्षण की दिशा में सही कदम ना उठाना, 
इन सब के कारण जो क्षति हो रही है, उसका एकमात्र उपाय हमें प्रकृति से सामंजस्य  स्थापित करना होगा , जितना हम उससे लेते हैं, क्या हम पुनः उसे प्रदान करते हैं, हमें भूमि पर वृक्षारोपण अनिवार्य रूप से करना ही चाहिये व जो भी वृक्ष है उन्हें बचाना 
और वृक्ष लगाना यहां पर्यावरण की दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक है। हमें इस प्रकार की जीवन शैली को अपनाना होगा , जहां सभी एक दूसरे के पूरक के रूप में काम करें, केवल भौतिकवाद की बहुत अधिक मात्रा विश्व को विनाश की और अग्रसर कर सकती है, हमारी प्राचीन सभ्यता का अगर हम अध्ययन करें, तो वहां हमें सभी तत्वों का पूजन व  उनके संरक्षण का भाव शुरू से ही विद्यमान रहा है, हमारी संस्कृति "वसुधैव कुटुंबकम" की रही है,
हम इसके मंत्रो भी अगर देखते हैं, तो संपूर्ण विश्व के मंगल का भाव उनमें छुपा हुआ है।
  " सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित दुख भाग भवेत "
        इसमें यह कामना की गई है, सब सुखी हो, सब निरोगी हो, 
सब भद्र हो, यानी सब की एक दूसरे के प्रति मंगल भाव की कामना हो व वैसा ही आचरण हो, कोई भी संसार में दुखी ना हो,
ऐसी मंगल भाव से हमारी संस्कृति ओत-प्रोत है, आश्चर्य तो इस बात का है , हमारी संस्कृति में इतने मंगलमय भाव होते हुए भी
हम  ही हमारी संस्कृति की मूल अवधारणा से सही तरीके से परिचित नहीं हैं, इतना सुंदर दर्शन क्या किसी अन्य संस्कृति में हमें देखने को मिलता है।
      केवल भारतीय संस्कृति में ही संपूर्ण विश्व को एकजुट रखने 
का मूल भाव छुपा हुआ है, हमारी संस्कृति सदैव सामंजस्य वह साहचार्य की रही है, हमें हमारी संस्कृति पर पूर्ण  गर्व  होना चाहिये, इसमें संपूर्ण विश्व की भलाई के सारे सूत्र  विद्यमान है।
       हमारी संस्कृति में एक शब्द है देवता, देवता यानी देने वाले, 
तो हमारे पंच तत्वों को भी देने वाली प्रवृत्ति होने के कारण देव ही माना गया है। 
        हमारी संस्कृति दैवीय संस्कृति है, जो केवल देना जानती है,
संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश, आपस में मिलकर रहने का संदेश
अगर किसी संस्कृति ने सर्वप्रथम दिया है, तो हमारी प्राचीन संस्कृति ही है। 
       आप देखेंगे हमारे जितने भी देव-स्थान है, वे या तो पहाड़ों पर है, यह नदियों के किनारे, प्राचीन काल में तो शिक्षा भी वनों में गुरुकुलों में होती थी, इस प्रकार हम अध्ययन करें तो तो पायेंगे,
कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनि कितने विद्वान थे, उन्होंने उसे समय ही प्रकृति से साहचार्य की भावना के कारण तीर्थ क्षेत्रों का निर्माण 
पहाड़ों व नदियों के किनारे किया, ताकि पहाड़ों व नदियों का भी संरक्षण हो सके, ऐसी सुंदर विचारधारा वाली संस्कृति को छोड़कर इसमें संपूर्ण विश्व के मंगल का ही भाव छुपा है, हमेशा की अन्य संस्कृतियों को अपनाते जा रहे हैं, हमारी जो मौलिक संस्कृति है, 
वह "सादा जीवन ,उच्च विचार की रही है" , वह जो मूल भाव हमारी संस्कृति का है, उसे दर्शन को छोड़कर हम प्रदर्शन में व्यस्त हो गये, तो जहां मूल दर्शन विद्यमान हैं, वहां आज भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं मिलेगी, क्योंकि वहां सामंजस्य व सहचार्य की भावना निश्चित ही होगी ।
        विश्व परिवार दिवस यह दिवस मनाने की अवधारणा तो अभी आई है, हमारी प्राचीन संस्कृति में चाहिए मूल भाव शुरू से ही विद्यमान रहा है और इसीलिए हमारी संस्कृति अभी तक नष्ट भी नहीं हुई, क्योंकि इसकी मूल अवधारणा को यहां का जन-जन पहचानता है वह उससे मजबूती से जुड़ा हुआ है। हमारी संस्कृति में वह सब विद्यमान है, जो बाहर से हमें मिलता है, पर बड़े ही आश्चर्य का विषय है, विदेशी लोग हमारी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं और हम भारतीय ही अपनी संस्कृति की मूल अवधारणा को भूलते जा रहे हैं। 
     सभी को विश्व परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, 
मेरा इस लेख को लिखने  का उद्देश्य यह है कि हमारी संस्कृति पूर्णतः वैज्ञानिक अवधारणा पर बनी हुई है, इसमें सभी के मंगल की कामना भी की गई है वह किस प्रकार से हमें यज्ञ आदि द्वारा 
उसको चैतन्य रखें, यह भी हमारी संस्कृति में बताया गया है। 
ऐसी महान संस्कृति में जन्म लेने पर हम सभी को गर्व होना चाहिये, इसमें ज्ञान- विज्ञान का जो प्रयोग बताया गया है, वह सृष्टि का कल्याण किस प्रकार हो, हमारे प्राचीन ग्रंथो में उसकी सुंदर सब विधि भी बताई गई है। 
विशेष:- मेरा विनम्र निवेदन उन महानुभावों से है, जिन्होंने हमारी प्राचीन संस्कृति का अध्ययन ही नहीं किया व बगैर सही अध्ययन के , वे इसके विरोध में खड़े हो जाते हैं, अगर आप हमारी मूल संस्कृति का सही अध्ययन करें तो पाएंगे यह विश्व के सर्वांगीण विकास की और ही संकेत करती है, पर बात इसे पूर्ण ईमानदारी से अपनाने की है।
आपको अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद

प्रिय पाठक गण,
     सादर नमन, 
 किसी भी व्यक्ति या समाज की तरक्की तभी होती है, जब आपके कार्य व चिंतन की दिशा सकारात्मक हो। 
           अगर आप सकारात्मक चिंतन करते हैं तो आप निश्चित ही किसी भी समस्या का व्यावहारिक समाधान खोज ही लेंगे।
         अगर आपके चिंतन की दिशा सकारात्मक नहीं है, तो आप सही अवलोकन भी नहीं कर पाते हैं, आपकी सोच अगर सकारात्मक है तो आप कुछ ना कुछ हल अवश्य ही निकाल लेंगे।
        अपनी सोच को सदैव ही सकारात्मक रखें, परिस्थितियां आती जाती रहेगी, अनुकूल भी, प्रतिकूल भी, अनुकूल स्थिति में 
सही कदम उठाये, प्रतिकूल स्थिति में  धैर्य  न  खोये।
        अगर सोच को आप सकारात्मक रखते हैं, तो आप समाधान को खोजेंगे, वह अपने आसपास के परिवेश में रह रहे अन्य व्यक्तियों में भी सकारात्मकता का सन्चार करेंगे।
       फिर आप जो भी कदम उठायेंगे, वह आपकी सकारात्मक चिंतन के कारण सही दिशा की ओर ही जायेगा।
     स्वयं सकारात्मक रहे, परिवार में सकारात्मक वातावरण रखें, 
सहयोग व समर्पण की भावना विकसित करें, तो कोई भी बाधा
आपकी राह में नहीं आयेगी और अगर आई भी तो वह बाधा सकारात्मक चिंतन के कारण आपका मार्ग ही प्रशस्त करेगी।
      एक सफल नेतृत्वकारी का प्रथम गुण सकारात्मक चिंतन ही होना चाहिये, वह स्वयं सकारात्मक होगा तो अन्य में भी ऐसी ही भावना का बीजारोपण अवश्य करेगा। सही दिशबोध के साथ 
ही जीवन को स्वयं भी जीते हैं वह औरों को भी अपने सकारात्मक चिंतन द्वारा औरों को प्रेरित करने का कार्य करते हैं।
       स्थितियां जीवन में कैसी भी हो, जब हमारा चिंतन ही सकारात्मक होगा तो हम किसी भी प्रकार उनका हल निकाल ही 
लेंगे।
    विपरीत परिस्थितियों उपस्थित होने पर भी हम अपना धैर्य न छोड़े व समय की प्रतीक्षा करें। क्योंकि समय सदा स्थिर नहीं रहता वह बदलता ही है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय हिंद 
जय भारत। 



प्रिय पाठक गण,
            सादर नमन, 
आप सभी को मंगल प्रणाम, 
         जिंदगी में हमें हमेशा कुछ ना कुछ फैसले करने ही होते हैं,
कुछ हमारे जीवन के स्वपन होते हैं, कुछ जीवन की कटु हक़ीक़ते।
        सकारात्मक सोच बड़ी ही अच्छी बात है, मगर केवल सकारात्मक सोचने मात्र से ही तो किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं, हमें वास्तविकता व स्वप्न का अंतर भली-भांति समझना चाहिये।
        दिवा स्वप्न देखना अच्छी बात नहीं, संपूर्ण अवलोकन करना व सही निर्णय लेना, परिस्थितियों का संपूर्ण विश्लेषण करना, अपने आसपास घट रहे घटनाक्रम पर पैनी नजर, वर्तमान स्थिति जो भी हमारी है, उसका सही आकलन, सही रणनीति का ज्ञान,
यह सभी हमारे जीवन के अभिन्न अंग है।
              सभी की परिस्थितियों अलग-अलग होती है, हमें अपनी परस्थितियों, जिनके साथ हम सदा रहते है, उनकी प्रवृत्ति  का सही ज्ञान  वह उसके बाद सही आर्थिक ,मानसिक व सामाजिक संतुलन हम उन परिस्थितियों के अनुरूप  किस प्रकार अधिकतम सकारात्मक दिशा हो सकती है, जो आपके उस परिवेश, वातावरण व जिन भी लोगों के समूह में आप रहते है, उन सभी का वह स्वयं का हित किस प्रकार संवर्धन हो, इस प्रकार की उचित एक संपूर्ण नीति को हमें बनाना चाहिये।
        जीवन में हमें आर्थिक, सामाजिक, भावनात्मक, व्यवहारिक 
इन सभी बातों का सही समावेश करना होता है, इन सभी का उचित सम्मिश्रण हीं एक परिपूर्ण जीवन होता है।
        फिर परिस्थितियों के अनुसार प्राथमिकताएं भी बदलती है,
एक बालक के सर्वांगीण विकास के लिये उचित आहार, भावनात्मक सबंल, सही दिशा यह प्राथमिक होते हैं ।
        एक गृहस्थ जीवन जीने के लिए प्राथमिकताएं परिवार का कुशलता पूर्वक आर्थिक संचालन होती है।
         एक कुशल गृहणी के लिए सभी के साथ तालमेल व सूछ- बूझ पूर्वक परिवार का पालन प्राथमिकता होती है।
        इस प्रकार जब सभी को अपने-अपने निज कर्तव्य व
प्राथमिकताओं का सही भान होगा तो वह उस दिशा में ही सही प्रयास भी करेंगे वह परिणाम भी निश्चित तौर पर सही होंगे। 
        हकीकत व स्वप्न दोनों का उचित तालमेल हमें जीवन की सही दिशा की ओर अग्रसर करता है।
      स्वप्नदर्शी होना भी आवश्यक है, पर मात्र स्वप्नदर्शी होने से ही सभी कार्य नहीं हो सकते, आपको जो भी स्वप्न है, उसे दिशा में पूर्ण दृढ़तापूर्वक कदम भी निरंतर बढ़ाना होते हैं। तभी आप किसी भी मंजिल या स्वप्न को जो आप देख रहे हैं, उसके नजदीक पहुंचेंगे, और यह निरंतर प्रयास द्वारा ही संभव है। 
        वर्तमान समय का सही आकलन व अपने स्वप्न पर दृढ़तापूर्वक अमल, अगर आप करते हैं तो आपकी आंतरिक दृढ़ता वह मार्ग अपने आप प्रशस्त कर देती है। 
         हकीकत को समझते हुए सपनों के निर्माण की दिशा में 
पूर्ण शक्ति व सामर्थ्य पूर्ण प्रयास निश्चित ही आपको अपने स्वपनो को पूर्ण करने का सामर्थ्य आप में जगा देते हैं।
        हमें अपने भीतर छिपी हुई आंतरिक शक्तियों को पहचानना चाहिये व विवेकपूर्ण उन पर कार्य करना चाहिये, यह आपको आपकी मंजिल के करीब ले जायेगा, निरंतरता जीवन में सबसे अधिक आवश्यक है।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जयभारत 
जय हिंद।



प्रिय पाठक गण,
    सादर नमन, 
यह लेख खास तौर पर मेरे युवा मित्रों को समर्पित है, हमें हमारे जीवन में तीन महत्वपूर्ण पड़ावों या सोपानों से गुजरना होता है।
            वे तीन महत्वपूर्ण सोपान है, हमारा बचपन, युवावस्था, 
वृद्धावस्था। 
          प्रथम चर्चा बचपन की, हम हमारे बाल्यकाल में विभिन्न प्रकार के वातावरण से गुजरते हैं, जिसमें हमारा स्वयं का परिवार,
हमारे आसपास का परिवेश व वातावरण, वह सकारात्मक है या
नकारात्मक, हमें भी उस समय ज्ञान नहीं होता, फिर भी हमारे घर का वातावरण, संस्कार, सामाजिक परिवेश इन सब से ही हमारा बाल्यकाल  गुजरता है, अगर हमारे पारिवारिक संस्कार मजबूत है, तो निश्चित ही हम एक अच्छे व्यक्तित्व के रूप में रूपांतरित होते हैं, आपसी सहयोग इसमें सबसे महत्वपूर्ण है और यह संस्कार परिवार व समाज से ही प्राप्त होते हैं।
            बचपन में कहीं सुनी गई बातें हमारे मानस मन पर प्रभाव
अवश्य डालती है, बचपन में परिवार से अगर हमें सच बोलने की शिक्षा प्रदान की गई है, तो एक अच्छा संस्कार हमारे भीतर डाला गया है, यह हम पर निर्भर करता है उसका किस प्रकार उपयोग करते हैं, हमारे आसपास का वातावरण हमारे व्यक्तित्व निर्धारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्धारण करता है, इसलिए अगर हमारा बचपन एक अच्छे पारिवारिक माहौल में बीता है, तो निश्चित  ही एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
                बचपन में हमारे परिवार के अतिरिक्त जब हम शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं, वहां पर भी विभिन्न विचारधाराओं से हमारा सामना होता है, कुछ हम मूल शिक्षा से प्राप्त करते हैं, कुछ अपने निजी अनुभवों से।
            अब आता है हमारा द्वितीय पड़ाव , यह  है हमारी युवावस्था, इस समय हम अनेक प्रकार के स्वप्न व विभिन्न आयामों से गुजर रहे होते हैं , इस समय हम में उत्साह बहुत होता है, कुछ कर गुजरने का, अपने स्वपनो पर काम करने का, कुछ तो हमारे भीतर मौलिक होता है, जो हमें बार-बार प्रेरणा देता है, और जो हमारी मौलिकता है, उसे अगर हमने सही तरीके से जान लिया 
तो हमारा आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, हमें सर्वप्रथम 
अपनी अभिरुचियों को जानना चाहिये, हमारे अपने मूल व्यक्तित्व के सबसे नजदीक क्या है, अगर हम अपनी अभिरुचि को ही 
अपने आय का साधन बना ले, तो हमारी उर्जा भी कभी क्षीण 
नहीं होगी, उसका एकमात्र कारण  यह है, हमने अपने व्यक्तित्व की स्व- ऊर्जा को जान लिया है। उम्र के इस पड़ाव पर हम में भरपूर ऊर्जा होती है, उसे समय सभी व्यक्ति अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार हमें राय देते हैं, मगर हमारे जीवन का कोई अगर निश्चित ध्येय न हो, तो हमारा इतना महत्वपूर्ण समय यूं ही बेकार चला जायेगा, हमारे जीवन का द्वितीय पड़ाव सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव  है, यह वह समय है जब हमें ऊर्जा तो भरपूर होती है, पर अनुभव की कमी होती है, इस उम्र में अनुभवी लोगों का मार्गदर्शन आवश्यक है।
            आप अपने जीवन में कोई भी कार्य करें, वह आप जितनी समर्पण से करते हैं, उतने ही शानदार परिणाम आपके जीवन में प्राप्त होते हैं। जीवन में आप जो भी करें पूर्ण रुचि से करें, तो परिणाम भी उतने ही अच्छे प्राप्त होंगे।
          कब आते हैं हम तीसरे पड़ाव पर, जीवन के इस मोड़ पर आते आते हमारे पास जीवन में कई अनुभव आ चुके होते हैं, अगर हम जीवन के अनुभव से सीख ले , तो हमारा स्वयं का जीवन हमें कई प्रकार की बातें सिखा देता है, अगर आप जीवन में धैर्य रखते हैं तो कई प्रकार की जो भी समस्याएं हमारे जीवन में आती है, हम उनका उच्च समाधान निकाल सकते है। हमें हमारी परिस्थितियों का सही आकलन अवश्य करना चाहिये, जब हम हमारी परिस्थितियों का सही अध्ययन कर लेंगे तो निश्चित ही हमारा चुनाव सही दिशा में होगा, अगर किसी भी क्षेत्र मैं हमारा अपना अनुभव नहीं है , तो उसे क्षेत्र के विषेषज्ञ की  सलाह ले।
हमारे जीवन के अनुभव हमारा वह खजाना हैं, जो अमूल्य है, अपना कुछ समय वृद्ध जनों व अनुभवी लोगों के साथ अवश्य 
बिताये।
         खास तौर से जब आप अपने जीवन के द्वितीय पड़ाव से गुजर रहे हो, अनुभवी व्यक्तियों के संपर्क में अवश्य रहें। उनका अनुभव आपके लिए बहुत काम का सिद्ध हो सकता है ।
      हमारे जीवन का तीसरा पड़ाव वृद्धावस्था होती है, उसे समय तक हम अनेक प्रकार के अनुभवों से गुजर चुके होते हैं, कहीं घटनाओं के साक्षी बन चुके होते हैं, पता अनुभव हमारी पूंजी हो चुका होता है, तो हमें जब भी समय मिले,  अनुभवी लोगों से अवश्य मिले, उनके पास उनके जीवन का अनमोल खजाना 
होता है, उनका अनुभव व उनकी नज़रें इतनी सिद्ध हस्त हो चुकी होती है, वह किसी व्यक्ति या घटनाक्रम को पहले से ही अनुमान लगाने में सक्षम होते हैं, वह उनके जीवन के अनुभवों की मुख्य पूंजी है, इसीलिए जब भी वृद्ध जनों से मिले, आदर पूर्वक मिले, 
मैं अपने जीवन बेशकीमती अनुभवो  के खजाने में से कुछ मोती आपको  अवश्य देंगे।
       वृद्धावस्था वह अवस्था है, जब आप अनेक अनुभवो से परिपक्व हो जाते हैं, इसलिए वृद्ध जनों से मिले ,उनका सम्मानकरे। उनके अनुभवों से लाभ ले।
      हम सभी के जीवन के पहले व दूसरे पड़ाव को हम जितनी खूबसूरती से जियेगे, आपका तीसरा पड़ाव उतना ही शानदार होगा।
आपका अपना 
सुनील शर्मा 
जय भारत 
जय हिंद।