प्रिय पाठक गण,
सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
सत्यपथ, हम किसी से कुछ भी कह लें, अपने आप से हम कुछ छुपा नहीं सकते, हम अपने जीवन की सभी राहों को स्वयं ही चुनते हैं, सत्यपथ कठिन हो सकता है।
मगर सत्य का अवलंबन लेने वाला किसी भी कल में पराजित नहीं होता, क्योंकि सत्य चमकते सूर्य की भांति होता है,
अंधकार कितना भी क्यों न हो, सूर्य के प्रकाश से ही वह जाता है।
हम कितना भी ऊपरी दिखावा कर ले, हमारी हकीकत हम स्वयं तो जानते ही हैं, जैसे ही हम उस ईश्वर की अनुकंपा को
महसूस कर लेते हैं, उसकी दिव्यता का बोध हमें प्राप्त हो जाता है। हम आंतरिक रूप से उतना ही सशक्त हो जाते हैं।
हमारा जीवन एक यात्रा है, उतार चढ़ाव, आशा निराशा ,
अपने पराए, इस प्रकार के सम्मिश्रण से ही यह सारा संसार ओत-प्रोत है। आपको किस प्रकार से इसमें रहना है, यह केवल आपको तय करना है।
सत्यपथ की अपनी बाधाएं भी है, मगर अंतत वह विजयी होता ही है। धैर्य पूर्वक निरंतर चलते रहें, मार्ग में अनेक बढ़ाएं आने के बाद भी सत्य मार्ग को न छोड़ें। हमें अपना जीवन एक बार ही प्राप्त होता है, यह सुअवसर है । हम अपने जीवन को जो दिशा देना चाहे, वह दे सकते हैं।
मार्ग में जो बाधाएं है, वह है हमारे लालच, सफलता पाने के लिए हमें कोई मार्ग तो चुनना ही होता है।
सत्य पथ का मार्ग चुने, मार्ग की अनेक बाधाओं के बाद भी जब हम सत्य का अवलंबन ग्रहण कर लेते हैं, तो वही सत्य पथ का मार्ग हमें दिशा दिखाता है।
मगर आज के समय में सत्य कहां पर कहना, कैसे कहना, उसके क्या-क्या परिणाम आ सकते हैं? वह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सत्य का बल बहुत है, मगर हम उसे समाज के हित में कैसे परिवर्तन कर सकें, सुधार कर सके ,यह प्रयास होना चाहिये और वह समाज हित में हो , तो उसे छिपा ले, व्यक्तिगत क्षति को हम सहन कर ले, मगर सत्य को उजागर करना समाज के हित के लिए आवश्यक हो, तो अवश्य ही उसे उजागर करें।
जैसे डॉक्टर बीमारी बढ़ जाने पर सर्जरी करते हैं, समझ में भी जब आपराधिक गतिविधियां, भ्रष्ट आचरण, नियमों की अवहेलना हो तो , हमें उनकी परिपालन हेतु कठोर सत्य भी हो, तो उसे उजागर करना ही चाहिए।
समय-समय पर संत व समाज सुधारक यह कार्य करते रहे हैं। श्री कृष्णा भी भगवान से गीता में स्पष्ट कह रहे हैं, जब भी पृथ्वी पर असुर, पदम व अधम व अभिमानी वढ जाते हैं, तब तब उनके दमन हेतु मैं अवतार लेता हूं, गीता धर्म ग्रंथ है, नीति का शास्त्र है वह सर्व सामान्य इसे पढ़कर प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
यतो धर्म ततो जय।
यह श्री कृष्णजी का वाक्य है, अतः कर्तव्य के परिपालन में कोई भी चूक न हो, इसे हमेशा ध्यान में रखें, फिर शेष परम पिता परमात्मा पर छोड़ दे।
विशेष:- आप जो भी कार्य करें, वह संपूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से करें, शेष प्रभु पर छोड़े, यही निष्काम कर्म योग है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय भारत
जय हिंद।