प्रिय मित्रो,
व मेरे पाठक गण, जीवन को जीना भी एक कला है। जब तक हम हमारी मानसिकता को नही बदलते, जीवन का आनंद प्राप्त नही कर सकते।
सारे धर्म संयम का मार्ग दिखलाते है, पर क्या अति संयम से चीज़े नही बिगड़ती। उस परमपिता ने हमे पांच तत्व ( ( भूमि, जल, वायु, आकाश, अग्नि ) प्रदान किये है,इन्ही पांच तत्वो का मिला जुला हमारा शरीर है। इन्ही का उचित संतुलन ही हमे जीवन में आनंद की प्राप्ति करा सकता है।
जैसे बसंत ऋतु आती है, तो वृक्षो की हरीतिमा व मौसम में एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा होती है। उसका आनंद उस ऋतु काल में ही उठाना चाहिए। इसी प्रकार प्रकृति का जो भी मौसम जब हो, उसके अनुरूप अपने को ढालकर हम जिए तो हम काफी ख़ुशी व आनंद का अनुभव करेंगे।
जीवन को दो तरह से जिया जा सकता है :
व मेरे पाठक गण, जीवन को जीना भी एक कला है। जब तक हम हमारी मानसिकता को नही बदलते, जीवन का आनंद प्राप्त नही कर सकते।
सारे धर्म संयम का मार्ग दिखलाते है, पर क्या अति संयम से चीज़े नही बिगड़ती। उस परमपिता ने हमे पांच तत्व ( ( भूमि, जल, वायु, आकाश, अग्नि ) प्रदान किये है,इन्ही पांच तत्वो का मिला जुला हमारा शरीर है। इन्ही का उचित संतुलन ही हमे जीवन में आनंद की प्राप्ति करा सकता है।
जैसे बसंत ऋतु आती है, तो वृक्षो की हरीतिमा व मौसम में एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा होती है। उसका आनंद उस ऋतु काल में ही उठाना चाहिए। इसी प्रकार प्रकृति का जो भी मौसम जब हो, उसके अनुरूप अपने को ढालकर हम जिए तो हम काफी ख़ुशी व आनंद का अनुभव करेंगे।
जीवन को दो तरह से जिया जा सकता है :
- उत्साह से
- या निरुत्साह से
आप क्या मानसिकता रखते है, यह जीवन वैसा ही बनने लगता है।
अगर आप अपने जीवन में उत्साह को प्रधानता देते है, तो आपका जीवन स्वमेव ही एक आनंदमय जीवन में परिवर्तित होने लगेगा। इसका आपके पास उपलब्ध संसाधनों से भी बहुत अधिक पड़ता है।
अगर आप मानसिक सोच में परिवर्तन करते है तो फिर आप एक जबरदस्त ऊर्जा का निर्माण अपने जीवन में करते है। प्रत्येक स्थिति में अपने उत्साह को बनाये रखने की मानसिकता आपके जीवन को आमूल-चूल बदलकर रख देगी। अपनी ऊर्जा शक्ति को सकारात्मक रखे। अपने कार्य में समय, श्रम व बुद्धि का उचित समन्वय करे व फिर उसका परिणाम देखे।
अपनी जबरदस्त सोच से आप अपनी सारी कर्मयोजना पर पूर्ण इच्छा शक्ति से अमल करिए, परिणाम निश्चित ही आप के पक्ष में होंगे। अगर आप किसी भी कार्य को सकारात्मक मानसिकता से शुरू करते हैं, तो वह विचार धीरे-धीरे मजबूती से अपना कार्य करने लगता है। अवचेतन मन में जब बारंबार कोई बात दोहराई जाती है तो वह मूर्त-रुप अवश्य लेती है।
इसको इस प्रकार समझिये कि मैंने स्वयं ने इस लेखन कार्य की शुरुआत कविताओं से की, शौक के बतौर। धीरे-धीरे लेखन करते-करते कब मेरी यह यात्रा बाहय-जगत से भीतरी जगत यानी कि मेरी स्वयं की अंतर्यात्रा बन गई, पता ही नहीं चला।
व्यक्ति से व्यक्तित्व में रुपांतरण हो जाना व क्रमशः उसमे अधिकाधिक विकास, बोध, जाग्रति, चेतना का आते जाना ही दरअसल किसी भी व्यक्ति के जीवन की सफलता का द्वार है।
जब तक आप अपने भीतर यात्रा नहीं करते, विचारों को नहीं पढ़ते, अपने आपको नहीं जानते और को कैसे जानेंगे। जैसे ही आप अपने आप को जानने की प्रक्रिया से जुड़ जाते हैं, समझिये आपने एक सही दिशा की ओर कदम बढ़ा दिया है। क्योंकि भीतर जाए बिना बाहरी जगत को आप नहीं समझ पाएंगे। जिस व्यक्ति ने भीतर की यात्रा की है केवल वही व्यक्ति अपनी क्षुद्रता को छोड़कर विराट की ओर बढ़ जाता है वह उसे कई दिव्य अनुभव प्राप्त होने लगते हैं।
उसकी ऊर्जा शक्ति सही दिशा को देख पाने में समर्थ होने लगती है। चेतना में एक अनूठा सा पैनापन आने लगता है।ऊर्जा को एक निश्चित क्रमबद्धता में ढालने के अभ्यास से आपके पास भी समय की बचत होने लगती है। एक साधारण मनुष्य व असाधारण मनुष्य में यही मुख्य फर्क होता है कि वह समय का मूल्य पहचान जाता है।
समय की हानि से बड़ी कोई हानि नहीं है क्योंकि समय कभी लौट कर नहीं आता है। पैसा प्राप्त हो सकता है पर जो समय नष्ट हो जाता है, वह फिर प्राप्त नहीं होता। समय एक अमूल्य निधि है, इसका सही उपयोग करना जिसने जान लिया, वही आगे बढ़ पाया है।
अतः कह सकते हैं मानसिकता में परिवर्तन व उस दिशा में निरंतर प्रयास ही आपको रूपांतरित कर पाते हैं। जिसने सत्य का अनुभव कर लिया, उसके प्रगति के द्वार खुल जाते हैं।
शेष फिर
आपका अपना
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