विश्वास

प्रिय मित्रों,

प्रवाह में आज एक कविता भेज रहा हूं, लेख लिखते-लिखते व पढ़ते पढ़ते कुछ परिवर्तन की इच्छा हुई इसलिए आज प्रवाह में एक छोटी सी प्रेरक कविता की पंक्तियां जोकि स्वरचित है वह लिख रहा हूं।





कविता का शीर्षक है विश्वास।


स्वयं पर विश्वास ही मंजिल तक पहुंचाता है,
अंधकार कितना भी घना हो, सुबह का उजाला अवश्य आता है।
जिसने विश्वास की डोर को कभी न टूटने दिया,
अंधेरा कितना भी घना हो आस का दीपक जलाए रखा
विश्वास को जिसने साथी बनाया मंजिल वही पाता है।

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