जीवन में रिश्तों का महत्त्व

प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन, हमारा जीवन कई प्रकार के रिश्तो की सुंदर डोर से जुड़ा होता है, क्या बगैर रिश्तो के हम जीवन की कल्पना भी कर सकते हैं। ये रिश्ते ही तो हैं, जो हमारे जीवन मैं बहार लाते हैं।
 हमारी मानवीय संवेदनाओं का आदान प्रदान हमें भीतर से मजबूत बनाता है। 
 कई निर्णय वस्तुस्थिति को ध्यान में रखकर करना होते हैं। आत्म चिंतन करते हुए हमें रिश्तो को सीखना चाहिए अगर आपकी मूल रुप से मानवीय संवेदनाओ से जुड़ी भावनाएं हैं तभी तो आप मानव होने के सबसे करीब होते हैं। कोई रिश्ता अगर दरकता है तो मानवीय मूल्य आहत होते हैं। गरिमापूर्ण व्यक्तित्व व समाज ही किसी भी समाज की सबसे बड़ी धरोहर है। ईश्वर से यह विनम्र प्रार्थना है कि वह मानवीय संवेदनाओ को जागृत रखें। अगर हम यंत्रों का उपयोग करते-करते अगर स्वयं भी यंत्र बन गए तो यह मानवीय मूल्यों के लिए सबसे अधिक खतरे का संकेत है।
जब हम किसी से भी बात करते हैं, तब हम उसके हृदय को छूते हैं। जब हम किसी के ह्रदय में स्थान बना लेते हैं, तब समझो हम मानवीय मूल्यों के सबसे अधिक करीब खड़े होते हैं।
कई बार कुछ फैसलों ऊपर से बड़े ही कड़े नजर आते हैं, पर मानवीय दृष्टि से वह बड़े होते हैं। किसी भी निर्णय में उसका दूरगामी परिणाम सबसे अधिक महत्व का होता है। आपका आज का छोटा सा निर्णय कल क्या परिणाम देगा, इस सोच के साथ अगर हम अपने जीवन को चलाते हैं तो हमें सही रूप में मानवीय रिश्तो व वस्तुस्थिति के बीच आवश्यक तालमेल बनाने में सहजता होगी।
जितना हम अपने जीवन में सहज होते हैं, उतने ही हम जीवन के करीब होते हैं। सरलता, सौम्यता, स्वाभाविक निश्चल हंसी, यह सब ईश्वरीय वरदान है, जो कि हमें बड़ी मुश्किल से प्राप्त होते हैं। कहते हैं ईश्वर का वास निश्छल हृदय में होता है। अगर आप किसी प्रकार का मन में भाव लाते हैं तो वह भाव ही आपके पूरे व्यक्तित्व का निर्धारण करता है,
प्रेम ईश्वर का दिया वह उपहार है, जो हमें दिव्यता की ओर ले जाता है।
उस दिव्यता को हम अपने भीतर संजो कर रखें, आख़िरकार वह दिव्यता ही तो है जो हमारे साथ हरदम होती है।
प्रभु सभी को जीवन में रिश्तों का महत्व समझने की शक्ति प्रदान करें।
रिश्ता एक धागा है, जो सबको जोड़े रखता है एक माला की तरह, परिवार भी एक माला की तरह होता है, अपने अपने परिवार को माला की तरह एकजुट करके रखिए। ईश्वर से पुनः प्रार्थना मानवीय रिश्तों को ऊंचाई प्राप्त हो।
आज शायद मेरी कलम कुछ भावों में भर गई है, पर क्षमा करें बिन भावों के मानवीय जीवन फिर कैसा होता। हर्ष उल्लास, छोटी छोटी खुशियां जो हम भूलते ही जा रहे हैं, उन्हें पकड़ना ही मानवीय परिष्कार की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा।
आशा है आप मेरे लेखों को हृदय से चाहने लगे हो।
सभी को पुनः सादर वंदन।
हरि ओम।
ईश्वर आप सभी पर कृपा बनाए रखें। जीवन में रिश्ते बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, उन्हें मजबूत बनाएं एक दूसरे का संबल बने।


आपका अपना,

सुनील शर्मा।

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