प्रिय पाठकगण,
सादर नमन।
हमारी युवा पीढ़ी पहले से कहीं चौकन्नी व अपने व्यक्तिगत हितों के प्रति सतर्क है व हमें उसे सामाजिक भावना सिखानी होगी। जिस भी समाज में, राष्ट्र में, परिवार में हम रहते हैं, परस्पर सहयोग होने पर ही हम किसी भी संकट या परिस्थिति से बाहर आ सकते हैं।
आज युवा पीढ़ी का मानस एक अजीब अंतर्द्वंद से जूझ रहा है। भौतिकवाद की बढ़ती पराकाष्ठा ने उसके भीतर के मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था कम की है, यह थोड़ा सा चिंतनीय विषय है, देखा जाए तो पूर्णरूपेण गलती उनकी भी नहीं है। पुरानी पीढ़ी के वैचारिक दृष्टिकोण जो बेहद संकुचित विचारधारा के थे या अभी भी है, नई पीढ़ी उनसे तालमेल नहीं बैठा पाती है।
नया समाज जिस रुप में उभर रहा है, उसके लिए समाज के सभी अंग कहीं ना कहीं उत्तरदाई तो हैं। युवा पीढ़ी उसे सही मार्गदर्शन दे सके ऐसे व्यक्तित्व की तलाश में होती है क्योंकि उनमें अनुभव की कमी है, उत्साह भरपूर है पर उन्हें दिशाबोध नहीं है। उन्हें सही दिशा बोध देने के लिए हमें अपने स्वयं को दैनंदिन आचरण को भी टटोलना होगा। बाल मन व युवा मन सभी चीजें गहराई से देखकर फिर उसका विश्लेषण करते हैं। उनके मानस मन में अच्छे शुभ विचारों का प्रस्फुटन हो, यह हमें अपने आचरण से तय करना होगा।
जब युवा पीढ़ी विभिन्न समस्याओं के बाद भी हमें नैतिक और सामाजिक मूल्य का पालन करते देखेगी तो वह
निश्चित ही हमारा अनुसरण करेगी पर ऐसा मात्र दिखावे के रूप में ना होकर वास्तविक रुप में हो।
आपका अपना,
सुनील शर्मा।
निश्चित ही हमारा अनुसरण करेगी पर ऐसा मात्र दिखावे के रूप में ना होकर वास्तविक रुप में हो।
आपका अपना,
सुनील शर्मा।
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