प्रिय पाठकगण
सादर नमन
आप सभी का दिन शुभ व मंगलमय हो ,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अंतर्यात्रा का भाग 17 प्रस्तुत कर रहा हूं ।मां सरस्वती की कृपा से यह शब्द विचार आप सभी तक पहुंचा पाता हूं ,आज अंतर्यात्रा में हम विचार करेंगे सूक्ष्म शक्ति पर ,
जैसे ही हमारे चिंतन में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं वह हमारे आभामंडल में वृद्धि करते हैं वह आभामंडल से सभी अपने आप ही आकर्षित हो जाते हैं ।अपने मानसिक भाव को निरंतर सुदृढ़ करते हुए उसके अनुकंपा से हम कार्य करते रहे हम केवल वास्तव में निमित्त ही होते हैं करने वाला व कराने वाला तो वही है ,उसकी कृपा शक्ति के बगैर हम एक पग भी नहीं बढ़ा सकते हैं ।अपने सभी कार्यों को उसकी शरणागति में रहते हुए कार्य करें ,उसकी शरणागति में रहते हुए कार्य करने पर आप एक अलौकिक आनंद का अनुभव कर करेंगे ।आप सब भी उस अलौकिक आनंद का अनुभव कर सकते हैं ,सच्चे व शुद्ध हृदय से उसकी शरणागत होकर जब हम कार्य करते हैं तो हमें हमारे कर्म का भार अनुभव नहीं होता। जब हम अपना अहंकार उसमें शामिल कर देते हैं तो वही कार्य हमारे लिए भार हो जाता है ।
आपने कई बार सुना होगा कि किसी भी कार्यक्रम में जो सार्वजनिक स्तर पर किए जाते हैं उनमें अंत में आभार प्रदर्शन किया जाता है ना कि भार प्रदर्शन इसका तात्पर्य है कि सारी प्रक्रिया ईश्वर कृपा से शुरू हुई ,वह जिन भी महानुभाव ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सहयोग किया होता है सार्वजनिक मंच से उनका आभार प्रकट किया जाता है।
जब भी हम किसी कार्य को उत्साह व समर्पण से करते हैं ,औरों के मुकाबले हमें बेहतर परिणाम इसीलिए प्राप्त होते हैं ,क्योंकि हमारी सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही शक्ति और कार्य में उत्साह निष्ठा से कार्य करती है और परिणाम चमत्कारिक होते हैं।मन को एकाग्र चित से एक लक्ष्य धारण करने से हम उसे निर्विघ्न रुप से संपन्न कर पाते हैं ।मार्ग की बाधाएं भी हमारे संकल्प की शक्ति से हटने लगती हैं, वही जो हमें बाधायें लग रही थी वही हमारे कार्य को करने का उत्साह प्रदान करने लगती हैं।
पर उसके लिए हम जो भी लक्ष्य बनाएं पूर्ण निष्ठा से उसका पालन अवश्य करें ,ईश्वर निश्चित ही आपके कार्य में सहभागी बन कर औरों को भी आप से जुड़ने के लिए प्रेरणा प्रदान करेंगे
विशेष :-अपनी स्वयं की आस्था अपने लक्ष्य के प्रति रखें ,पूर्ण समर्पण निष्ठा से उसे करें आप अवश्य अपने लक्ष्य को पाएंगे ।
आपका अपना
सुनील शर्मा
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