प्रिय मित्रों ,
प्रबुद्ध पाठकगण ,
युवा साथियों ,मातृशक्ति ,विभिन्न विभिन्न देशों ,प्रांतों से मेरे इस ब्लॉग को नियमित अध्ययन करने वाले सभी को मेरा सादर नमन।
आज मैं आपसे इस विषय पर बात करूंगा ,संघर्ष क्यों जरूरी है ।जैसे ही हमारा जन्म होता है ,हम जहां पर भी जन्म लेते हैं उस स्थान विशेष वह परिवार की समाज की अपनी निजी मान्यताएं होती है ।जिनसे हमारा परिचय जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं ,कराया जाता है ,फिर हम ईश्वरप्रदत्त अपनी बुद्धि के अनुसार उन मान्यताओं से या तो साम्यता स्थापित करते हैं या संघर्ष। दरअसल किसी भी समाज में जो परंपराएं सदियों से चली आ रही होती है ,आपका मन या तो उनसे तादात्म्य बिठा लेता है या फिर उसका विरोध करने लगता है ।
जो चीज हम अपने स्वभाव के अनुकूल नहीं पाते ,वह हटाते जाते हैं ,व जो अनुकूल पाते है वह ग्रहण करते जाते हैं ।अनुकूल ,प्रतिकूल परिस्थितियों से हमारा सामना अपने जीवनकाल में अवश्य होता है ।हम प्राचीन परंपराओं ,अपने अनुभवों ,अनुकूलता, प्रतिकूलता को उसमें शामिल करते हुए अपने अनुकूल परिदृश्य की रचना करना चाहते हैं ,और यही से हमारे जीवन के संघर्ष की शुरुआत हो जाती है ।अपने देश और समाज की परंपराओं को जीते हुए हम उनमें कई ऐसी कुरीतियों का अनुभव करते हैं ,जो कि मानव हित में नहीं होती है उन कुरीतियों के उन्मूलन हेतु हमारे मन में वैचारिक संघर्ष चलने लगता है ।
हम अपने अध्ययन से उपलब्ध परिस्थितियों के आधार पर अपना संघर्ष जारी रखते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का अध्ययन अगर हम करते हैं ,तो प्राचीन संस्कृति में हमें हिंदू धर्म ,ईसाई धर्म, मिस्त्र की संस्कृति ,इस्लाम धर्म आदि का स्वरूप देखने को मिलता है ।अलग-अलग धर्म या पंथ अपने अपने तरीके से इसका विवेचन करते हैं ,व व्यक्ति की बुद्धि इनमें उलझती जाती है और आज वर्तमान में तो पूरे विश्व में संचार माध्यमों के आदान-प्रदान व संस्कृतियों के वैचारिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान की दिशा में पहल की जाने लगी है। इन सब में हम अपने आप को कहां पर खड़ा कर पाते हैं, इसका विचार तो हमें ना चाहते हुए भी करना ही पड़ता है, यहीं से हमारे और आपके विभिन्न संघर्षों की शुरुआत हो जाती है।
मूलभूत आवश्यकताएं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान के बाद व्यक्ति का मन विलासिता व भविता की ओर आकर्षित होने लगता है, वह इन्हें पाने का भरसक प्रयत्न करता है, वह लगातार इन सब चीजों से जूझते रहने पर वह स्वयं अपनी अंतर्दृष्टि को विकसित करने का प्रयास करता है। जो जितना अधिक से अधिक सतर्क होता जाता है, वह अपने संघर्ष को एक दिशा देने में कामयाब हो जाता है। एक छात्र पढ़ाई करता है अथक मेहनत और परिश्रम से वह अपनी पढ़ाई पूर्ण करके अपने जीवन यापन की तैयारी करता है। विश्व में कहीं पर भी जन्मे हुए सभी मानव अपने अपने समाज में या परिवेश में वहां की एक निश्चित अवधारणा से संस्कृति से अपना परिचय करता हुआ उनसे तादात्म्य उठाने की कोशिश करता है।
क्या आप में से किसी ने भी इस विषय का गहराई से अध्ययन किया है कि हमें हमारे जन्म से ही प्रकृति ने कितने बहुमूल्य उपहारों से हमें नवाजा है। हमें कुछ चीजें प्रकृति की ओर से बगैर किसी शुल्क के प्रदान की गई है। जिसमें भूमि, जल, वायु, सूर्य, आकाश, चंद्रमा आदि शामिल है। क्या हम इन प्रति उपहारों का उचित तरीके से दोहन कर रहे हैं व उनके संरक्षण के उपाय कर रहे हैं।
इन सभी बातों का उत्तर केवल ज्ञान अध्ययन प्राचीन संस्कृतियों में जो एक मानवीय जीवन जीने का तरीका बताया गया था, उनमें उन्हें सन्निहित है। पुनः हिंदू धर्म या वैदिक धर्म या मानव धर्म है इंसानियत का धर्म हम कहें, उसे कोई भी इनाम दें पर वह संपूर्ण विश्व के हित में हो ऐसा किस प्रकार से किया जा सकता है। संपूर्ण मानवता का हित केवल इसी बात में निहित है कि सभी संस्कृतियों में किसी न किसी गुण विशेष को प्रधानता देते हुए बनाई गई है। तब सभी संस्कृतियों के अध्ययन के पश्चात सार्वभौमिक सत्य क्या है, यह जानना चाहिए वह इसके आधार पर जीवन जीने की कोशिश हमें करनी चाहिए।
मानव जीवन परस्पर संघर्ष पर आधारित होकर समन्वय पर आधारित होना चाहिए, पर क्या यह इतना आसान है, इसके लिए भी हमें अपने आप को मानसिक रूप से अपना आत्म बल बढ़ाते हुए सही दिशा में आगे बढ़ना होगा। आज जब संपूर्ण मांगता कराती नजर आती है, तब विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में एक " वैदिक धर्म " या " सनातन सत्य " जो किसी भी काल में बदलता ही नहीं है, को वर्तमान की कसौटी पर वर्तमान परिदृश्य के आधार पर पुनर्परिभाषित करते हुए इसके व्रत ज्ञान को संपूर्ण विश्व में फैलाना होगा।
तभी वह वर्ग संघर्ष, सामाजिक, संघर्ष व अनेकों प्रकार के संघर्ष जो चाहे, अनचाहे हम पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं उनका उत्तर खोजकर सही दिशा बोध के साथ उस ओर चलना चाहिए अन्यथा हम अपने निजी स्वार्थों के कारण एक वैश्विक संकट की ओर बढ़ने लगेंगे। इसके निराकरण हेतु संपूर्ण मानव जाति को एकजुट होकर प्रयास करने चाहिए। हमें अपनी शिक्षा में मानवीय मूल्यों की स्थापना द्वारा ही एक दिशा प्रदान की जा सकती है।
आइए संकल्प लें मानव जाति के हित में प्रकृति से समन्वय स्थापित करें ना कि उसे संघर्ष करें। लेकिन यह सब इतना समझ भी नहीं है अपनी-अपनी जगह पर आप सभी मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देते हुए जीवन को जिए। तभी हम इस संघर्ष में अपने आप को बचाते हुए विश्व को बचाते हुए एक अच्छा समाज भविष्य आगामी पीढ़ियों को धरोहर के रूप में प्रदान कर पाएंगे।
विशेष = जीवन में बिना संघर्ष के कोई भी सफलता नहीं प्राप्त होती है निरंतर नए प्रयास व नए उत्साह के साथ लगातार अनवरत संघर्ष हमें जारी रखना होता है तभी हम अपने किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं
आपका अपना,
सुनील शर्मा।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें