प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
इस संपूर्ण विश्व में जहां कहीं भी मंगल पाया जाता है, वह केवल आपकी कृपा है।
आप की महती कृपा के बिना जीवन में कुछ भी संभव नहीं है,वे परमपिता परमेश्वर हमें समान दृष्टि से देखते हुए हमारा पालन-पोषण कर रहे हैं,उनकी असीम अनुकंपा सभी पर समान रूप से बरसती है, पर अनुभव केवल वे ही कर पाते हैं, जिन पर आपकी कृपा दृष्टि होती है।
हमारे अंतर्मन में कई प्रकार के विचार चला करते हैं,सतगुरु के परम सानिध्य से हम अपना व औरों का भी मंगल कर सकते हैं
वह परमपिता तो सूक्ष्म को भी देख लेते हैं, यह जो हमारी देह है, यह हमारा स्थूल स्वरूप है, वे सद्गुरु हमें अपनी ओर खींचकर हमें पावन अमृतमय वाणी से सिंचित करते हैं, अपने परम कल्याणकारी वचनों से वह हमें सदा ही प्रेरित करते हैं।
पर उनकी अमृतमय दृष्टि के केवल वही अधिकारी हैं, जो उनके सुक्ष्म उपदेश को ग्रहण कर लेते हैं।
वह परम आत्मा शांति के धारक स्वयं तो परम शांत होते ही हैं, उनकी जो संगत में आता है, वह
भी उस दिव्य आभा मंडल से युक्त हो देवी कृपा को प्राप्त होता है।
इस प्रकार उनकी गुढ परम रहस्यमयी अमृत रस को अपने भीतर उतार कर सदा उस आनंदघन परमात्मा की मंगल अनुकंपा को भीतर अनुभव करते हुए मंगल कृपा मैं जीवन जीने लगते हैं।
जग न जाने रहस्य यह, परम रहस्य को केवल वही जाने, और न जाने कोई, केवल तेरी शरण में आने से ही मंगल आनंद होय।
विशेष:-चाहे सम परिस्थिति हो, चाहे विषमता प्रत्येक स्थिति में उसकी मंगल उपस्थिति का अनुभव करते रहे, उसकी अमृतधारा आपका कल्याण करेगी, उसे अपने हृदय में धारण कर लें, यही एक मंगल उपाय है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
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