प्रिय पाठक गण, सादर नमन,
आप सभी पाठक गणों को सादर वंदन,
आप सब लोगों के लिए इस प्रकार इन लेखों को लिखने पर मेरी स्वयं की आंतरिक उर्जा में भी अभिवृद्धि हो जाती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आप सभी को मेरे द्वारा लिखे गए लेख अवश्य पसंद आ रहे होंगे।
आज का हमारा विषय है क्षमा वीरस्य भूषणम किसी को भी क्षमा करने का जो गुण है, वह हर किसी व्यक्ति में नहीं होता है।लेकिन जो व्यक्ति दूसरों की भूलों को पहचानते हुए भी उन्हें क्षमा प्रदान करता है, दरअसल वही मेरी नजरों में महामानव है।
हम सभी उस परमपिता की संतान हैं,परंतु हम आपस में एक दूसरे से छल कपट करने के कारण अपने चित्त को अशांति से भर लेते हैं, वरना कोई कारण नहीं कि हम परेशान हो।
क्षमा करना कोई आसान कार्य भी नहींहै, किसी की भूल को क्षमा करने के लिए विशाल हृदय चाहिए, पर क्या हम जानबूझकर अपराध करने वाले को क्षमा करेंगे।
अगर ऐसा हम करते हैं तो संभव है वह व्यक्ति अपना दुर्गुण छोड़ दें, पर बारंबार क्षमा के उपरांत भी कोई दुर्गुण को ना छोड़े तो वह क्षमा के योग्य पात्र न होकर उपेक्षा का पात्र है।
क्योंकि एक दुर्गुणी व्यक्ति को अधिक बार माफ करने पर भी उसमें परिवर्तन का न होना और अधिक दु:साहसी हो जाना उसके नैतिक पतन का तो कारण बनता ही है। उस व्यक्ति की उपेक्षा न करने पर वह समाज के भी नैतिक पतन का कारण बन जाता है।
हमें बड़ी ही सावधानी से क्षमा वीरस्य भूषणम् की पंक्तियों को सही अर्थ में समझना होगा, अन्यथा हम अर्थ का अनर्थ कर देंगे।
सामाजिक हित के जो भी विरुद्ध हो, वह निश्चित ही क्षमा का पात्र न होकर उपेक्षा योग्य ही है, अन्यथा वह समाज के लिए एक विचित्र स्थिति उत्पन्न कर देगा।
ऐसे व्यक्ति की उपेक्षा न होने पर नैतिकता का पालन कर रहे व्यक्तियों में क्षोभ उत्पन्न होगा, जो कि उचित नहीं है।
इस प्रकार हमें सोच समझकर ही निर्णय लेना चाहिए।
विशेष:-दुर्गुणी व्यक्तियों को एक सीमा तक ही क्षमा करना चाहिए, क्षमा के उपरांत भी सुधार न होने पर वह उपेक्षा के ही योग्य है।
आपका अपना
सुनील शर्मा
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