प्रिय पाठक वृंद,
सादर नमन,
सभी सुधि पाठक गण आप सभी को परमपिता परमेश्वर सदैव अनेक खुशियों वह सौभाग्य दायक पल जीवन में प्रदान करें।
आप और हम इस परमपिता की अनूठी संरचनाएं हैं। मानव को मिला प्रकृति का मिला यह अद्भुत वरदान है कि वह अपनी समस्त अंतर्निहित शक्तियों का जागरण कर उन्हें चाहे जिस दिशा में मोड़ सकता है।
ईश्वर अगर कहीं स्थित है, तो वह गहरे हमारे अंतःकरण मैं स्थित संपूर्ण साक्षी भाव से प्रत्यक्ष सूक्ष्म अवस्था घटना की रिकॉर्डिंग कर रहा है।
हम इस जीवन में जो भी अच्छा या बुरा विचार करते हैं। वह अवश्य समय पाकर प्रस्फुटित हो जाता है।
हमें हमारे प्रत्येक मनोभावों को दृढता से पैर रखते हुए अपनी दिशा तय करना चाहिए। क्या यह संभव है कि हम चाहते कुछ और हैं और होता कुछ और है निश्चित ही हम कहीं ना कहीं कुछ अवश्य छोड़ रहे हैं। निरंतर ध्यान पूर्वक अवलोकन करते रहिए।
वह परमात्मा तो सदैव प्रसन्न चित्त व सदा सभी का सहायक व कृपा करने वाला है, लेकिन इस रहस्य को जानने हेतु हमें अपने भीतर की और अनिवार्य रूप से जाना ही होगा। तब ही हम उन सभी अनसुलझे सवालों को समझ सकेंगे कोशिश अवश्य करें, सृष्टि के परम रहस्य आपके भीतर विद्यमान हैं।
जो सब जानकर भी अनजान है,वह केवल आपकी प्रत्येक स्थूल और सूक्ष्म क्रियाओं का तटस्थ भाव से आकलन कर रहा है। वही दिव्यता हम सभी के भीतर विद्यमान हैं, आवश्यकता इस के स्वरूप को जान कर इसमें जाने की है।
हम सभी एक उर्जा पिंड है, हमारे भीतर सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियां दोनों ही विद्यमान है। हम किसे अधिक सीचते हैं। वही शक्ति हमारे भीतर अधिक मात्रा में निर्मित होने लगती है।
अतः हम अहो भाव से उसे धन्यवाद अवश्य अर्पित करें,सुख और दुख दोनों में समत्व भाव बनाए रखकर अपने जीवन नौका को उसके हवाले कर फिर अपने कर्मों को करें, यही परम रहस्य है।
विशेष :- प्रतिकूल व अनुकूल दोनों ही परिस्थितियों में अपने विवेक को न खोए , यही आपको और लोगों से हटकर सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करेगा।
इति शुभम भवतु
आपका अपना
सुनील शर्मा
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