धारयति स धर्म

प्रिय पाठकों वृंद,
सादर प्रणाम,
  
आज हम बात करेंगे कि क्या धारण करने योग्य है।हमारा मानव शरीर ईश्वर प्रदत एक अनूठा यंत्र ही तो है। धारयति स धर्म इसकी विवेचना हम करें तो हमें प्रकृति को समझना होगा।
जिस प्रकार पंचमहाभूत पृथ्वी, जल ,अग्नि ,वायु, को आकाश में सभी समान रूप से हमारा पोषण करते हैं, इसी प्रकार के धर्म का निर्वहन हम करें।
हमारी आवश्यकता अनुसार जो मूलभूत हमारी जरूरतें हैं, जिसमें भोजन वस्त्र आवास शामिल है। इन सभी को हम ईमानदारी पूर्वक स्वयं भी ग्रहण करें वर्ना आवश्यकता से अधिक होने पर अन्य को वितरित करें, जो इन से वंचित है।
इस प्रकार हम इस मानव धर्म को अपने जीवन में स्थान दें। तथा धारयति स धर्म पंक्ति का सही रूप में निर्वाह करें।
आपका अपना
सुनील शर्मा
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इति शुभम भवतु।

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