प्रिय पाठक गण,
सादर वंदन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
आज प्रवाह में हम बात करेंगे मन की उलझन विषय पर।
आज प्रवाह में संवाद का विषय कुछ रोचक व लीक से हटकर है।आशा करता हूं आप लोगों को मेरा ब्लॉग व मेरा आप से संवाद का तरीका पसंद आ रहा होगा।
जो मेरे दिल में होता है, कोशिश करता हूं, वहीं लेखनी में आए, क्योंकि जब शब्दों में बनावट आ जाती है, तो वे अपना अर्थ खो देते हैं।
आइए विषय पर चलते हैं, मन की उलझन।
हम सभी अपने जीवन में कई समस्याओं से गुजरते हैं,उस समय हमारा मन कुछ कहता व मस्तिष्क कुछ और हम दुविधापूर्ण स्थिति में अपने आप को पाते हैं।
इसका सही तरीका तो केवल यही है कि हम शांति और धैर्य पूर्वक चीजों को समझें, तब हम मन की उलझन को समझ सकेंगे।
सभी व्यक्तियों का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है, कोई परिवार में समय बिताना पसंद करता है तो कोई मित्रों में, दरअसल हम उसे अपने मन की उलझन बताना चाहते हैं, जिसके हम ह्रदय से करीब होते हैं।
जीवन में कुछ अच्छे मित्र, अच्छे नियम अवश्य बनाएं, यह दोनों ही आपके मन की उलझन से निकलने में रामबाण का कार्य करेंगे।
अच्छे मित्र जीवन की अनमोल धरोहर होते हैं, समय चाहे विपरीत हो या अनुकूल,सभी झंझावातो में वह संबल बनकर आपके साथ एक अडिग चट्टान की भांति खड़े होते हैं।
अगर आप अपने परिवार के लिए अपना योगदान करते हैं ,तो मन की उलझन सामने आने पर वही आपके सबसे निकटतम सहयोगी साबित होते हैं।
इसके बाद अच्छे मित्र जीवन में आपके सहायक होते हैं अच्छे विचार अच्छा साहित्य धर्म ग्रंथ अच्छे नियम यह सब हमारी मानसिक उलझन में दर्पण का कार्य करते हैं।
मन की उलझन जब बढ़ जाए, आंधी का गुबार कोई छाए, तूफान भीतर जब कोई चल रहा हो, मानस मन बार-बार मचल रहा हो, शांति से होने देना, जब तूफान गुजर जाए, तब उसे देखना परत दर परत सब दिखने लगेगा, मन की उलझन पर पड़ा धूलो का गुबार जब हट जाए, स्वच्छ विचारों की फुहार उस पर पड़ने देना, सब कुछ ठीक होने लगेगा बस मन की उलझन को थोड़ा वक्त देना।
विशेष:-जब भी मन में उलझन हो, तब सबसे पहले हमें शांत चित्त होना चाहिए। ताकि हम गहराई से उसे समझ सके। निश्चित ही उत्तर हमें अपने मन की गहराई में जाने पर प्राप्त होगा और वही आपके लिए सत्य भी होगा
आपका अपना
सुनील शर्मा
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