सादर वंदन,
आप सभी को मेरा मंगल प्रणाम,
आज हम बात करेंगे समसामयिक में देश में आज जो नागरिकता कानून के विरुद्ध प्रतिक्रिया इतनी हिंसक क्यों है। यह नागरिकता कानून का विरोध है या कुछ और ही बात है।
हमारे राजनीतिक नेताओं को गहराई से विचार करना चाहिए कि कोई भी कदम वे जो उठाते हैं तो उसके सभी अपेक्षित परिणामों पर नजर डालने के बाद ही उसे उठाएं, अभिमान वश हम तो ऐसा ही करेंगे यह भाषा मेरी इस देश की तो कमी नहीं रही, यहां पुराने समय में भी शास्त्रार्थ होते थे तब निर्णय होता था। पुरातन काल में भी पक्ष विपक्ष सभी थे।
आज ऐसा देश में क्यों है कि एक पार्टी जो कह रही है वही देश का धर्म है।जिस राम कि आप दुहाई देते हैं उन्हीं राम ने तो एक धोबी के कहने पर अपनी पत्नी सीता को वनवास दे दिया, ऐसा उनका राजधर्म था।
आज तो आप के विरुद्ध कोई सही बात भी कहता है तो उसे डर लगता है कि कहीं उन्मादी भीड़ का शिकार ना हो जाए।
इतना खराब माहौल इस देश का बनाने के लिए जितने राजनेता जिम्मेदार हैं उससे भी कहीं अधिक नागरिक भी,जो ऐसे राजनेताओं को चुनते हैं जिनमें सामंजस्य का अभाव है और जो सही मूलभूत मुद्दों को छोड़कर देश को पतन की ओर धकेल रहे हैं।
ऐसे राजनेता नागरिक बुद्धिजीवी समाजशास्त्री सभी को प्रथम तो यह विचार करना होगा मनुष्य की भौतिक आवश्यकता है ही कितनी, भौतिकता की अंधी दौड़ विनाश को ही आमंत्रित करती है।
समय की पदचाप को सुनिए वह केवल भौतिकता की अंधी दौड़ से बचिये समाज को सही दिशा प्रदान करें।
क्या आप ऐसे घर में रहना चाहेंगे जहां रोज किसी न किसी कारण से झगड़ा उत्पन्न हो रहा हो संवेदनशील होकर जरा सोचिए यह हमारे भारत का चिंतन ही नहीं है यहां की परिपाटी तो सादा जीवन उच्च विचार की ही रही है।
धन की दौड़ कहां तक। नियम पालन की सीख तो हमें प्रकृति से सीखना चाहिए जो कभी नियंत्रण से बाहर नहीं जाती।
और जब जाती है तो विनाश करती है समय रहते अगर राजनेताओं समाज के नागरिक धार्मिक नेता सभी अगर नहीं चेते तो यह देश का दुर्भाग्य माना जाएगा।
जिस देश में कबीर नानक कृष्ण राम से धुरंधर नायक रहे हो उस देश की इस दशा पर अब मुझे तरस आता है।
क्या हम हिंसा के बीज बोकर अहिंसा उगा सकते हैं।
कारण देश में बलिदान दिया वह क्या देश का यह स्वरूप देखना चाहते थे कभी नहीं। समय है सभी मिलकर सोचे आज देश की क्या दिशा व दशा हो रही है।
विशेष:-सरकार को नागरिकता कानून पर फिर से विचार करना चाहिए, देश के सामने अन्य अनेक गंभीर मुद्दे हैं सरकार उन चीजों पर विचार क्यों नहीं करती। बेरोजगारी नदी की सफाई सामाजिक सद्भाव ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिन पर गहराई से विचार किया जाना चाहिएपिछले कुछ समय से एक राजनीतिक हडधर्मिता का जो स्वरूप भारत में आ रहा है वह कतई उचित नहीं है।
इति शुभम भवतु
आपका अपना
सुनील शर्मा
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें