सब समझने लगे हैं।
एक छोटी सी शिकायत उनसे,
थे बचपन में अच्छे।
यंत्रों के साथ रहकर वे भी यंत्र बन गए हैं।
गलती सारी उनकी भी नहीं दौर ही ऐसा है।
एहसासों की बर्फ अब पिघलने लगी है,
बच्चे अब बड़े हो गए हैं।
कुछ कह नहीं सकते,
वे काफी समझदार हो गए हैं।
सब तो मालूम है उन्हें, मानो सारा संसार एक छोटे से यंत्र में कैद है।
मगर हम मानव हैं, कुछ हंसी, कुछ खुशी
कभी तल्ख़ियां, कभी रूठना, फिर मनाना।
शायद जिंदगी यही है।
बच्चे अब बड़े हो गए हैं।
वे अब अल्हड़ नहीं रहे,
समय से पहले गंभीर हो गए हैं।
खिलखिलाते ही अच्छे लगते हैं बच्चे,
जैसे तितली उड़े बाग में,
पंछी मुक्त गगन में विचरण करें।
उनकी कुछ बातें गहरे दिल को लग भी जाती है,
जब ऐसा होता है कोई कविता हृदय से फूट जाती है।
छू लेना बच्चो आकाश, मगर पांव जमीन पर रखना,
यह इल्तजा है, इसे नसीहत न समझना।
बच्चे अब बड़े हो गए हैं
1 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब
एक टिप्पणी भेजें