सादर नमन,
आज प्रवाह में कविता लिख रहा हूं।
अखंड राष्ट्र हो मेरा,
यह स्वप्न हीं हो भले मेरा,
एक दिन अवश्य पूरा होगा।
कटिबद्ध होकर खड़े रहे
राष्ट्र के संवर्धन के लिए।
यह कलम प्रतिकार करती है राष्ट्र द्रोही यो का।
राष्ट्र दोही कौन है, जिन्हें अपनी ही जन्मभूमि से प्यार नहीं,
नफरत फैलाते हैं जो समाज में,
सामाजिकता से जिनका सरोकार नहीं।
वे सारे ही जो नफरत की विषबेल बो
रहे,
राष्ट्र दोही मेरी नजर में।
मानवता का मार्ग अवरुद्ध जो करता,
वह प्रत्येक व्यक्ति ही दानव है,
मनुष्यता की जो पहल करता,
उसे मेरा शत शत वंदन है।
पालघर की घटना मानवता पर प्रहार है।
दोषियों को कठोर से कठोर दंड मिले,
यही आज न्याय की दरकार है।
फिर कोई ऐसा साहस करें ना पुनरावृति न हो ऐसी घटना की,
ऐसी कठोर सजा मिले।
वे नर पिशाच ही तो है मानव वेश में,
इनसे कैसी सहानुभूति, मानवता को शर्मसार किया,
शीघ्र अति शीघ्र न्याय हो, यही समय की पुकार,
अब भी ना चेते जो, तो छा जाएगा मानवीय सभ्यता में घोर अंधकार।
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