सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आज हम बात करेंगे एक सामान्य सी मनोवैज्ञानिक समस्या पर, सब कुछ संभव नहीं।
हो सकता है , आपको मेरा लेख का आधार कुछ निराशाजनक सा प्रतीत हो, परंतु यही जीवन का सत्य है। यह प्रकृति बड़ी अनूठी है, जहां इसे हम आसान समझते हैं, वह कठिन हो जाती है, यहां हम कठिन समझते हैं, वहां यह सरल हो जाती है।
जीवन में बहुत कुछ रहस्य के गर्भ में होता है, अगर सब कुछ हमारे सामने उजागर हो तो जीवन का आनंद भी नहीं आएगा। हमेशा कुछ बातें बाकी रहती है।
सभी मनुष्य की दौड़ उसका अपूर्णता की समाप्ति के लिए है और यह इतना आसान नहीं, प्रथम तो पूर्ण कोई है ही नहीं, सब में कुछ अपूर्णता तो है। हम पूर्ण हो जाए ,यह संभव भी नहीं है। मगर हम अपनी अपूर्णता का भी आनंद उठा सकते हैं, यह जरूर संभव है।
आप अपूर्णता से पूर्णता की यात्रा को जारी रखना चाहिए, यह निरंतर अभ्यास द्वारा ही संभव है। जीवन में हमें सभी प्राप्त हो, यह संभव तो नहीं, मगर प्रयास अवश्य जारी रखना चाहिए।
हमें एक निश्चित सोच अवश्य तैयार करना चाहिए कि हमारा स्वयं का विचार जीवन के प्रति क्या है,अंतर्मन से उठने वाले सुविचार को भी हम सही तौर पर तब ही पढ़ सकते हैं, जब हम स्वयं के प्रति सजग होंगे, स्वयं के प्रति सजगता के बगैर आप दूसरे व्यक्ति के प्रति सजग कैसे हो सकते हैं।
कुछ जीवन मूल्य हो, तभी जीवन में हम सुखदाई स्थिति की कल्पना कर सकते हैं, हमारी सभी की यात्रा दरअसल स्वयं से स्वयं की यात्रा है। यह यात्रा हम सभी को करना अनिवार्य है, इसे हम किस प्रकार पूरा करते हैं, यह हम पर निर्भर है।
हमारी सीमाएं क्या है,यह अवश्य पहचाने संपूर्ण समग्रता पूर्वक कार्य करें, फिर सब उस परमपिता पर छोड़ दें, यह थोड़ा सा दार्शनिक लग सकता है, पर अभ्यास करके देखें, निश्चित ही आपको जीवन जीने का आनंद आएगा।
विशेष:-सब कुछ संभव नहीं, इसके शीर्षक से यह नकारात्मक लग सकता है, मगर यही जीवन का सत्य है, हम जो सोचते हैं वह सब संभव नहीं, मगर प्रयास अवश्य करते रहना चाहिए, अपने प्रयासों में कोई कमी ना रखें, अपने कार्य को पूर्ण सजगता से करना हमारे हाथ में है, उसके बाद उस परमपिता पर सब छोड़ दें,
इति शुभम भवतु
आपका अपना
सुनील शर्मा
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