आप सभी को सादर नमन,
आज देश में जो राजनीतिक हालात हैं,वह निश्चित ही एक अच्छी तस्वीर तो नहीं पेश करते हैं।
भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी या कहीं जा सकती है, किसके कोई भी नैतिक मूल्य अभी तक स्थापित ही नहीं हो पाए।
आज हर राजनीतिक दल राष्ट्रवाद की कोरी बातें करता नजर आता है, परंतु वस्तुतः हर राजनीतिक दल येन केन प्रकारेण सत्ता हमारे हाथ में हो छल कपट से कैसे भी, यह हमारे आज की देश की राजनीतिक दशा है।
तस्वीर ऐसी है, तो हम आम नागरिक क्या करें, अगर लोकतंत्र को वास्तव में जीवित रखना है, अगर लोकतंत्र को वास्तव में जीवित रखना है, भारत की जनता को इस जर्जर हो चुके लोकतंत्र में अगर प्राण फूकना है, तो पहल जनता को ही करना होगी।
जनता को राजनीतिक दलों से सीधे सवाल पूछने होंगे, प्रथम आज जो राजनीतिक परंपरा बन रही है,हर सरकारी संपत्तियों का जो निजी करण हो रहा है, सरकार अपने मूलभूत दायित्व से हटती नजर आ रही है, यही देश के लिए दुर्भाग्य कहा जाएगा, सरकार का कर्तव्य है वह सरकारी संपत्ति की सुरक्षा करें, अगर सरकार ही सरकारी संपत्तियों की निजी करण की पहल करने लगेगी, तो फिर उनका उत्तरदायित्व ही क्या रह जाएगा।
अगर सब कुछ निजी हाथों में चला गया, तो उनकी मनमानी देर सवेर शुरू हो ही जाएगी।
क्या केवल महंगे भत्ते, एक बार चुनाव लड़ने के बाद आजीवन पेंशन, समय-समय पर सांसदों की सुविधा में अभिवृद्धि, इन सब पर राजनीतिक दल एकजुट नजर आते हैं, मगर देश की अभिवृद्धि कैसे हो, बेरोजगारी कैसे दूर हो, देश के संसाधनों का सही प्रयोग किस प्रकार हो, इस और हमारे राजनीतिक दलों की कोई सामूहिक चेतना नहीं है।
दरअसल हमारे देश में कैसे राष्ट्रीय नीति का निर्माण होना चाहिए, की भले ही सत्ता परिवर्तन हो, जनहित की नीति जो शुरू से चली आ रही हो उन्हें कोई भी सरकार बदल ना सके, इस पर सभी राजनीतिक दलों को विचार कर एक सामूहिक राष्ट्र नीति का निर्माण करना चाहिए, एक आयोग बनाया जाए, इसमें राजनीतिक दलों के नुमाइंदे, जनता के भी सभी वर्ग के प्रतिनिधियों का समावेश हो, फिर सब बैठकर मंथन करके इस बात पर विचार करें, आज के समय जो देश की दशा है,उसे सुधारने के लिए किस प्रकार की नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिए, यह सब सामूहिक चेतना से ही संभव है, अभी तो हमारे देश में ऐसा लगता है, राजनीतिक दलों ने बात तो जनता की करते हैं, मगर देखें तो सारे विपरीत हालात नजर आते हैं,
अतः सबसे अधिक जवाबदारी तो नागरिकों की ही बनती है, कि वे राजनीतिक दलों को इस बात के लिए तैयार करें कि वास्तव में देश का हित ही उनके लिए प्रथम हो, अभी तो उनके दलों का हित प्रथम नजर आता है , मुझे देश के युवा से सबसे अधिक उम्मीद है, वह बुद्धिमान है, मगर उसे अनुभवी ,कुशल मार्गदर्शन की आवश्यकता है, उसमें जोश भी है, मगर उसे दिशा नहीं मालूम, किस और जाया जाए, उन्हें अभिप्रेरित करना भी हमारे दायित्व में से ही एक है।
देश से अगर भ्रष्टाचार वास्तव में हमें खत्म करना है, तो किसी भी दल के चरित्रवान उम्मीदवार को ही हमें जिताना चाहिए, जो भी भ्रष्ट उम्मीदवार हो, चाहे किसी भी दल के हो उन्हें चुनाव में हम वोट ना दें। उन्हीं उम्मीदवारो को हम चुने , जिनमें स्थानीय समस्याओं की भी समझ हो, एक ललक हो समाज के लिए काम करने की।
युवाओं को राजनीति में सक्रियता दिखानी होगी, तभी इस देश में बदलाव की बयार आ सकती है, किनारे खड़े रहकर हम कुछ नहीं कर सकते।
राजनीतिक दल दल जो गहराता ही जा रहा है, उसे बदलना है, तो युवाओं को सक्रिय पहल करना ही होगी।
भारतीय राजनीति की दुर्दशा के लिए हम नागरिक भी जिम्मेदार हैं, राजनेताओं से सीधे सवाल पूछने की हम हिम्मत नहीं उठाते, जब तक राजनीतिक दलों से सीधे सवाल पूछने की हमारी हिम्मत नहीं होती, बदलाव बड़ा ही मुश्किल है। वे चुनाव के समय जो वादे कर देते हैं, उन पर वे कितना अमल करते हैं, यह देखना जनता का काम है, हम शायद जवाबदारी से पीछे हटते जा रहे हैं। हमें अपने मौलिक अधिकार और कर्तव्य दोनों ही समझने होंगे, हम देश के जिस भी भूभाग में रहते हो देश के विरुद्ध कोई कृत्य ना करें, जन जागरण फैलाएं, देश है तो हम हैं, यह भाव अगर हर नागरिक में जाग सके, तब ही देश की उन्नति संभव है, यह नागरिक बोध अगर हम जगा सके, तो निश्चित ही एक बहुत बड़ा बदलाव हो सकता है। हमें इसकी तैयारी करना ही चाहिए, राजनीतिक दलों के जो भी नुमाइंदे जीतकर जाते हैं, पे 5 साल बाद जब आपके पास वापस आए, तो उन्हें भी एक डर होना चाहिए कि हमें जवाब देना है, कि 5 साल हमने क्या किया, जब तक देश का हर व्यक्ति अपनी जवाबदेही नहीं समझता, देश का उत्थान मुश्किल है, सभी को पूर्ण ईमानदारी से इसमें भागीदारी करना चाहिए। युवकों को सामाजिकता का पाठ हमें सिखाना चाहिए, आज जीवन के हर क्षेत्र में अवमूल्यन हो रहा है, पर भारतीय राजनीति तो अभी तक के सबसे विकट दौर से गुजर रही है, इसमें प्राण हम भारतीय नागरिक ही फूंक सकते हैं।
विशेष:-देश के हर वर्ग को अपनी जवाबदारी समझना होगी, तभी देश में राजनीतिक बदलाव संभव है, आज देश की जो राजनीतिक दशा है किसी से छुपी नहीं है, कथनी और करनी का स्पष्ट अंतर हमें दिखाई देता है, इसमें बदलाव तभी संभव है जब हम भी इसके लिए तैयार हो, हमें राजनीतिक दलों से सीधे सवाल पूछने चाहिए, कि अभी तक देश की एक राष्ट्रीय नीति क्यों नहीं बना सके, इस पर सभी दलों को कार्य करना अनिवार्य हो, सत्ता चाहे परिवर्तित हो पर नीतियां परिवर्तित ना हो।
जय हिंद ,
जय भारत
आपका अपना
सुनील शर्मा
1 टिप्पणियाँ:
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