सादर वंदन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
जीवन जीना भी एक कला है, प्यारे मित्रों व सुधि पाठक गण, जीवन को संपूर्णता से जीना भी एक कला है।
क्या कारण है कि हमारे पास सभी साधन होते हुए भी हम अंदर से खुशी को महसूस नहीं करते, अगर हम खुश नहीं हैं, आनंदित नहीं है, प्रसन्न चित्त नहीं है तो इसके लिए जिम्मेदार अवश्य ही हम हैं, दूसरा कोई नहीं।
जीवन के छोटे-छोटे पल हम जीवन में हम सहेजते ही नहीं, हमें कल्पना में अपना जीवन गुजारते जाते हैं, यह होगा तो खुश होंगे, वह होगा तब खुश होंगे, इस प्रकार हम वर्तमान की खुशी से दूर होते जाते हैं, साधनो पर हमारी निर्भरता बढ़ती जाती है, और इसी कारण सब कुछ होते हुए भी हम खुश नहीं रह पाते, खुशी हमें भीतर से प्राप्त होती है, इसका संबंध हमारी मानसिक ऊर्जा से होता है, अगर हम भीतरी उर्जा से परिपूर्ण है, तो कम साधनो में भी हम आनंदित रह सकते हैं। अगर हमारे अंतर्मन में झंझावात चल रहा है, तो अनगिनत साधन भी हमें आंतरिक आनंद या खुशी प्रदान नहीं कर सकते है।
बहुत कुछ जीवन हमारे उसे जीने के नजरिए पर निर्भर करता है, हमें साधनों का उपभोग तो करना ही पड़ता है, पर वह आनंदपूर्वक करेंगे, तो हमारे भावों के कारण हमारे जीवन में आंतरिक समृद्धि की अभिवृद्धि होगी।
मेरा इस लेख को लिखने का तात्पर्य बस इतना ही है कि हमारी आंतरिक समृद्धि हमारी बाह्य समृद्धि से भी अधिक महत्वपूर्ण है, यह हमारे जीवन को तो उल्लासमय बनाती ही है,जो हमारे संपर्क में आता है वह भी हमारी आंतरिक संपदा का स्पर्श पाकर निहाल हो उठता है, जीवन की सच्ची संपदा आनंद पूर्वक जीवन के सुंदर क्षणों को जीने में ही है, यह जो अभी के पल हैं, वर्तमान के, हम उन पलों में भीतर से खुश नहीं, आनंदित नहीं, तो बाद में भी हम कितने साधन संपन्न भले ही हो जाए, भीतर से रिते ही रहेंगे, जीवन एक गीत की तरह होना चाहिए, एक मधुर संगीत की तरह, जिसे हम ही नहीं और भी गुनगुना सके, जीवन में एक लयबद्धता होनी चाहिए, जितने हम जीवन में लयबद्ध होंगे, उतना इसका आनंद बढ़ता ही जाएगा।
मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं कि साधन महत्वपूर्ण नहीं वह भी जरूरी है, जीवन यापन के लिए हमें धन भी जरूरी है ,मकान भी जरूरी है, अच्छी आय भी जरूरी है, मगर साथ ही अच्छे सामाजिक व पारिवारिक रिश्ते भी जरूरी है, जीवन की संपूर्णता इन्हीं से आती है।
कभी-कभी साधनों की चकाचौंध में हम जीवन को जीना ही भूल जाते हैं, साधन हम पर हावी हो जाते हैं, और यही हम मूलभूत चूक कर जाते हैं, जीवन में किसी से बहुत अधिक की अपेक्षा ना तो रखें, कोई आपसे बहुत अधिक अपेक्षा रखें, जीवन का सरलीकरण ही जीवन का आनंद है, जीवन जितना सरल व सहज होगा, उतना ही शानदार होगा।
जब हम साधनों की मृग मरीचिका में उलझ जाते हैं, तब हम जीवन की सहजता को खो कर उसका आनंद खो बैठते हैं, आपके पास जो भी साधन है, जितने भी साधन उपलब्ध है, उनका स्वयं भी आनंद लें वह औरों को भी इसकी प्रेरणा दें, वास्तव में आनंद तो हमारे भीतर ही विद्यमान है,पर हम दुनिया की आपाधापी में उसे विस्मृत कर बैठते हैं, जीवन को जिए न कि ढोए।
विशेष:- :जीवन का आनंद लेना सीखें, पूर्णता को महसूस करें, भीतर की ओर मुड़े, उस परम आनंद में स्त्रोत की अनुभूति करें, जो हमारे ही भीतर है, साधनों में नहीं।
जीवन को भरपूर जिये।
आपका अपना
सुनील शर्मा
इति शुभम भवतु
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