सादर नमन,
आप सभी को मंगल प्रणाम,
आप सभी का स्नेह ,आशीर्वाद बना रहे, यही प्रार्थना। मृत्यु हमारे जीवन का अंतिम सत्य है, जो अनिवार्य रूप से घटेगा ही, तब हम किस प्रकार का जीवन जिएं कि जब हम मृत्यु का वरण करे तो वह भी सुखदाई हो।
हमारे मन में आंतरिक अशांति ना हो, मृत्यु ही निर्वाण है। मृत्यु किसकी, इस शरीर से जो भी संबंध हम अच्छे या बुरे निभाते हैं,उन सब की। क्या हम जीते जी ही मृत्यु का वरण कर सकते है, मृत्यु के बाद जो घटना घटती है, हमारे सब संबंध छूट जाते हैं, वही स्थिति अगर हैं हमारे मन में आज ही मान ले,जीते जी ही हम संबंधों को शरीर से तो निर्वाह करें, किंतु भीतर से हमें निरंतर आभास रहे की मृत्यु अनिवार्य सत्य है, जो आएगी ही, घटित होगी ही, तो हम इस जीवन को जीते हुए भी एक खिलाड़ी की भांति जीवन को जी सकते है। जीते जी हम मृत्यु का आभास मन में कर ले, तो हमारा भय स्वमेव ही छूट जायेगा, क्योंकि यह घटना हम चाहे या ना चाहे, घटकर ही रहेगी।
तो क्यों ना हम जीवन को पूर्ण जिंदादिली से जीने का प्रयत्न करें, जिस भी पल को जिये, पूर्णतया उसी पल में रहे, भीतरी आनंद की स्थिति में बने रहे, आत्मबोध सदैव बना रहे। जब हम यह जान लेते हैं कि मृत्यु ही जीवन की अंतिम घटना है, हम सब कुछ यहीं छोड़ कर जाने वाले हैं, तो क्या हमारे पीछे, मृत्यु के बाद कुछ ना रहेगा, ऐसा कहना तो ठीक नहीं, क्योंकि हमारी अच्छी या बुरी यादें, हमारे कर्म का प्रतिफल, हमारी मृत्यु हो जाने के बाद भी अपना कार्य करेगा।
हमारे कर्मों की ऊर्जा शक्ति सकारात्मक रही है,तो वह हमारी मृत्यु के उपरांत भी लोगों को जीवन प्रदान करेगी, इसीलिए अपने जीवन को एक दिशा बोध अवश्य दें, मृत्यु तो तय है, इसलिए जीवन को इस प्रकार जिये कि हमारी मृत्यु के बाद भी सुखद अनुभूति हम छोड़ जाए। निश्चित ही यह शरीर तो छूटेगा,मगर हमारे जीवन ऊर्जा हमने किस प्रकार से हमारा जीवन जिया, हमारे जाने के बाद भी अपना कार्य करती रहेगी, जीवन को सकारात्मकता से जिए,ताकि यह भाव हमारे शरीर की मृत्यु के बाद भी एक अच्छी सकारात्मक ऊर्जा के रूप में सभी को संबल प्रदान करता रहे।
विशेष:-मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, जब हम यह अच्छी तरह समझ जाएंगे तो हमारे जीवन की हर घटना विवेकपूर्ण ढंग से हम करेंगे व मृत्यु को भी सुखद बना सकेंगे।
आपका अपना
सुनील शर्मा
जय हिंद, जय भारत।
इति शुभम भवतु
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें